पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/४३७

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कुल नामाजिक पूंजी का पुनरुत्पादन तथा परिचलन कर में पोर कमनः निर्माण की प्रक्रिया के अंतर्गत आभासी द्रव्य पूंजी के रूप में - नितांत अनुत्पा- का होता है, इन रूप में वह उत्पादन प्रक्रिया के साथ-साथ तो चलता है, किंतु उसके बाहर ही रहता है। यह पूंजीवादी उत्पादन के गले में बंधा हुआ पत्थर है। आभासी द्रव्य पूंजी के रूप में मंनित होते हुए इन बेगी मूल्य का उपयोग करके उससे लाभ अथवा आय प्राप्त करने की प्रमिलापा उधार पद्धति और “काग़जात" द्वारा पूर्ण होती है। इस तरह द्रव्य पूंजी अन्य रूप में उत्पादन की पूंजीवादी व्यवस्था के क्रम और विशद विकास पर असीम प्रभाव डालने के योग्य हो जाती है। प्राभानी द्रव्य पूंजी में परिवर्तित वेशी उत्पाद परिमाण में उतना ही अधिक बढ़ेगा, जितना ही अधिक पहले से कार्यशील पूंजी की कुल राशि होगी, जिसकी कार्यशीलता से उसका उद्भव हुना है। प्रति वर्ष पुनरुत्पादित अाभासी द्रव्य पूंजी के परिमाण की निरपेक्ष वृद्धि से उसका वंदीकरण भी मुगमतर हो जाता है, जिससे कि किसी व्यवसाय विशेप में उसका और भी तेजी में निवेश किया जा सकता है, फिर चाहे उसी पूंजीपति के यहां, चाहे दूसरों के यहां ( उदाहरण के लिए, उत्तराधिकार में प्राप्त संपदा आदि के बंटवारे के मामले में कुटुंब के सदस्यों के यहां ) । द्रव्य पूंजी के मंडीकरण से यहां आशय यह है कि वह अपनी मूल पूंजी राशि से विल्कुल जुदा हो जाती है, जिससे कि नई द्रव्य पूंजी के रूप में नये और स्वतंत्र व्यवसाय में निवेशित की जा सके। जहां क , क', क", इत्यादि (I) वेशी उत्पाद के विक्रेता इसे उत्पादन प्रक्रिया के प्रत्यक्ष फल के रूप पाते हैं, जिसमें साधारण पुनरुत्पादन में भी आवश्यक स्थिर और परिवर्ती पूंजी के पेशगी दिये जाने के अलावा परिचलन की कोई अतिरिक्त क्रियाएं आवश्यक नहीं होती ; और जहां ये विक्रेता इस प्रकार विस्तारित पैमाने पर पुनरुत्पादन के लिए वास्तविक आधार तयार करते हैं, और यथार्थ में वस्तुतः अतिरिक्त पूंजी का निर्माण करते हैं, वहां ख, ख', ख", इत्यादि (I) का रवैया इससे भिन्न होता है। १) क , क', क", इत्यादि का वेशी उत्पाद, जब तक ख, ख', ख", इत्यादि (I) के हाथ में नहीं पहुंच जाता, तब तक वह वास्तव में अतिरिक्त स्थिर पूंजी की तरह कार्य नहीं करता ( हम उत्पादक पूंजी के दूसरे तत्व - अतिरिक्त श्रम शक्ति , दूसरे शब्दों में अतिरिक्त परिवर्ती पूंजी-पर फ़िलहाल विचार नहीं करते )। २) वेशी उत्पाद के उनके हाथ में पहुंच जाने के लिए एक परिचलन क्रिया आवश्यक होगी- उन्हें यह वेशी उत्पाद खरीदना होगा। १) के सिलसिले में यहां ध्यान में रखना चाहिए कि हो सकता है वेशी उत्पाद का एक बड़ा भाग ( वस्तुतः अतिरिक्त स्थिर पूंजी ) ख , ख', ख" (I) के हाथों में अगले साल तक या और भी आगे तक प्रौद्योगिक पूंजी की तरह कार्य न करे, यद्यपि उसका उत्पादन दिये हुए वर्ष में क, क', क" (I) किया है। २) के सिलसिले में सवाल पैदा होता है : परिचलन प्रक्रिया के लिए आवश्यक द्रव्य कहां से आता है ? चूंकि ख, ख', ख", इत्यादि (I) द्वारा निर्मित उत्पाद, उत्पादन की उसी प्रक्रिया में वस्तुप में पुनः प्रवेश करता है, इसलिए कहना न होगा कि pro tanto उनके अपने ही वेगी उत्पाद का एक भाग (परिचलन के दखल के बिना ही ) सीधे उनकी उत्पादक पूंजी को अंतरित हो जाता है और स्थिर पूंजी का अतिरिक्त तत्व बन जाता है। और pro tanto इस उत्पाद से क, क', इत्यादि (1) के वेशी उत्पाद का द्रव्य में परिवर्तन नहीं होता। इसके