पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/४४०

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संचय तथा विस्तारित पैमाने पर पुनरुत्पादन . . २. क्षेत्र II में संचय हमने अभी तक यह माना है कि कं , क', क" ( 1 ) अपना वेशी उत्पाद ख, ख', ख", इत्यादि को बेचते हैं, जो उसी क्षेत्र 1 में हैं। किंतु मान लीजिये कि क. (I) अपना वेशी उत्पाद क्षेत्र II में ख को वेचकर द्रव्य में वदलता है। यह क (I) द्वारा वाद में उपभोग वस्तुएं ख़रीदे विना ख ( II ) को उत्पादन साधन वेचे जाने से , यानी क द्वारा एकपक्षीय विक्री से ही हो सकता है। लेकिन चूंकि IIस को माल पूंजी के रूप से उत्पादक स्थिर पूंजी के दैहिक रूप में तब तक परिवर्तित नहीं किया जा सकता, जब तक न केवल I का , वरन I के भी कम से कम एक अंश का IIस के, जो उपभोग वस्तुओं के रूप में विद्यमान है, एक अंश से विनिमय न हो ; किंतु अब क अपने I को यह विनिमय करके द्रव्य में नहीं बदलता वल्कि II से अपने 11 की विक्री से प्राप्त द्रव्य को - उसका विनिमय उपभोग वस्तु IIस की खरीद में करने के बजाय - परिचलन से निकालकर वदलता है, इसलिए अब क (I) के यहां जो हो रहा है, वह सचमुच अतिरिक्त आभासी द्रव्य पूंजी का निर्माण है, किंतु दूसरी ओर ख ( II ) की स्थिर पूंजी का उसी के बराबर मूल्य परिमाण का और अपने को उत्पादक स्थिर पूंजी के दैहिक रूप में रूपांतरित करने में असमर्थ एक अंश माल पूंजी के रूप में बंधा हुअा है। दूसरे शब्दों में ख ( II ) मालों का एक अंश और दरअसल prime facie [प्रत्यक्षतः] वह अंश , जिसकी विक्री के विना वह अपनी स्थिर पूंजी को पूर्णतः उसके उत्पादक रूप में पुनःपरिवर्तित नहीं कर सकता , अविक्रय हो गया है। इसलिए जहां तक इस अंश का संबंध है, अत्युत्पादन हुअा है, जो , जहां तक इसी अंश का संबंध है, इसी प्रकार उसी पैमाने तक पर पुनरुत्पादन में वाधक होता है। इस प्रसंग में क (I) की अतिरिक्त आभासी द्रव्य पूंजी सचमुच वेशी उत्पाद (वेशी मूल्य ) का द्रव्य रूप है, किंतु इसी रूप में विचार करने पर वेशी उत्पाद (वेशी मूल्य ) यहां अभी विस्तारित पैमाने पर पुनरुत्पादन की परिघटना नहीं है, वरन साधारण पुनरुत्पादन की परिघटना ही है। (प+ वे ) , जिसके बारे में यह बात कम से कम वे के एक अंश के संदर्भ में सही है, का अंततोगत्वा IIस से. विनिमय करना होगा, जिससे कि IIस का पुनरुत्पादन उसी पैमाने पर हो सके। ख ( II ) को अपना वेशी उत्पाद वेचकर क (I) ने उसे स्थिर पूंजी के मूल्य का तदनुरूप अंश दैहिक रूप में प्रदान कर दिया है। किंतु इसके साथ ही परिचलनं. से द्रव्य निकालकर विक्री के बाद पूरक ख़रीदारी न करके उसने ख ( II ) के मालों का उतना ही भाग अविक्रय बना दिया है। इसलिए यदि हम समग्र सामाजिक पुनरुत्पाद पर दृष्टिपात करें, जिसमें I और II दोनों के पूंजीपति शामिल हैं, तो हम देखेंगे कि क (1) के वेशी उत्पाद का आभासी द्रव्य पूंजी में परिवर्तन ख ( II ) की मालं पूंजी को , जो समान मूल्य राशि को दर्शाती है, उत्पादक (स्थिर) पूंजी में पुनःपरिवर्तित करने · की असंभाव्यता को और इसलिए विस्तारित पैमाने पर प्राभासी उत्पादन को नहीं, वरन सांधारण + .