पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/४४१

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कुल नामाजिर पूंजी का पुनरुत्पादन तथा परिचलन पुनम्मान में पबध को पीर इस प्रकार साधारण पुनरुत्पादन में न्यूनता को प्रकट करता है। र क (1) मे बेगी उत्पाद का निर्माण और उसका विक्रय साधारण पुनरुत्पादन की सामान्य परिघटनाएं हैं, इसलिए साधारण पुनरुत्सादन के आधार पर भी यहां हमारे सामने निम्न पन्यायाधित परिघटनाएं हैं : वर्ग 1 में ग्राभासी अतिरिक्त द्रव्य पूंजी का निर्माण ( अतः II के दृष्टिकोण मे प्रलोपभोग); वर्ग II में माल पूर्तियों का जमाव , जिन्हें उत्पादक पूंजी में पुनःपरिवर्तित नहीं किया जा सकता (अतः II में अपेक्षाकृत अत्युत्पादन); I में द्रव्य पूंजी का प्राधिस्य और II में पुनरुत्पादन न्यूनता। इस स्थल पर प्रांर अधिक ठहरे बिना हम इतना ही कहेंगे कि साधारण पुनरुत्पादन के विलेपण में हमने माना था कि I और II का सारा वेशी मूल्य आय के रूप में खर्च किया जाता है। लेकिन दरअसल बेशी मूल्य का एक अंश ही प्राय के रूप में खर्च होता है और दूसरा पंजी में परिवर्तित हो जाता है। वास्तविक संचय इस कल्पना के आधार पर ही हो सकता है। संचय उपभोग के मोल पर होता है जैसी व्यापक शब्दावली में छिपी यह वात एक भ्रांति है, जो पूंजीवादी उत्पादन की प्रकृति के विपरीत है। कारण यह कि यह मान लिया जाता है कि पूंजीवादी उत्पादन का उद्देश्य और उसका प्रेरक हेतु उपभोग है, न कि वेशी मूल्य को हथियाना और उसका पूंजीकरण , अर्थात संचय है। पाइये, अब क्षेत्र II में होनेवाले संचय को ज़रा ध्यान से देखें। II के संदर्भ में पहली कठिनाई, अर्थात उसका माल पूंजी II के घटक रूप से स्थिर पूंजी II के दैहिक रूप में पुनःपरिवर्तन , साधारण पुनरुत्पादन से संबद्ध है। आइये , पहलेवाली सारणी ही लेते हैं: ( १,०००+-१,०००३) I का विनिमय २,००० स से होता है। १,००० अतः २ अब यदि, उदाहरणतः, 1 के वेशी उत्पाद के अधांश , वे अथवा ५०० वे को स्थिर पूंजी के रूप में क्षेत्र I में पुनः समाविष्ट कर लिया जाता है, तो वेशी उत्पाद का यह भाग 1 में अवरुद्ध होने के कारण II के किसी भाग को प्रतिस्थापित नहीं कर सकता है। उपभोग वस्तुओं में परिवर्तित होने के बदले उसे स्वयं I में उत्पादन के अतिरिक्त साधन के रूप में काम करना पड़ता है (और यहां परिचलन के इस भाग में I तथा II के बीच विनिमय दरअसल पारस्परिक है, यानी I के श्रमिकों द्वारा १,००० प द्वारा १,००० IIस के प्रतिस्थापन से भिन्न माल दोहरा स्थान-परिवर्तन करते हैं )। वह I तथा II में यह कार्य एक ही समय नहीं कर सकता। ऐसा नहीं हो सकता कि पूंजीपति अपने वेशी उत्पाद का मूल्य उपभोग वस्तुनों पर खर्च करे और साथ ही बेशी उत्पाद का उत्पादक ढंग से उपभोग भी कर ने , यानी इसका अपनी उत्पादक पूंजी में समावेश कर ले । अतः २,००० (प+वे) के बदले केवल १,५०० , यानी ( १,०००+५००३) I इस योग्य होते हैं कि उनका विनिमय २,००० II से हो ; ५०० II अपने माल रूप से उत्पादक (स्थिर ) पूंजी II में पुनःपरिवर्तित