पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/४४८

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संचय तथा विस्तारित पैमाने पर पुनरुत्पादन ४४७ II. १,६०°स+८००+६००वे ( उपभोग निधि ) = ३,००० । उपभोग वस्तुओं के रूप में उत्पादित १५०वे , जिन्हें यहां (१०°स+ ५०प ) II में परिवर्तित कर लिया गया है, अपने दैहिक रूप में पूरी तरह मजदूरों के उपभोग में चले जाते हैं , ऊपर बताये अनुसार १०० का उपभोग I ( १०० प ) मज़दूरों द्वारा और ५० का II ( ५० II) के मजदूरों द्वारा किया जाता हैं। दरअसल II में , जिसमें उसका कुल उत्पाद संचय के लिए उपयुक्त रूप में तैयार होता है, आवश्यक उपभोग वस्तुओं के रूप में वेशी मूल्य से १०० अधिक हिस्से का पुनरुत्पादन करना होगा। यदि पुनरुत्पादन वास्तव में विस्तारित पैमाने पर शुरू होता है, तो परिवर्ती द्रव्य पूंजी I के १०० उसके मजदूरों के हाथों होकर II के पास लौट आते हैं , जव कि II माल पूर्ति के रूप में I को १००वे और इसके साथ ही माल पूर्ति के रूप में ५० खुद अपने मजदूर वर्ग को अंतरित करता है। संचय के लिए क्रम व्यवस्था में किया परिवर्तन इस प्रकार है : I. ४,४००स+ १,१००+ ५०० उपभोग निधि ६,०००। II. १,६०°स+ ८००+६०० उपभोग निधि = ३,००० पहले की ही तरह योग ६,००० । इन राशियों में निम्नलिखित पूंजी हैं : I. ४,४००स+१,१००८ (द्रव्य ) = ५,५०० II. १,६०°स+ ८००८ (द्रव्य )=२,४०० =७,६००, जब कि उत्पादन की शुरूआत निम्न से हुई थी : I. ४,००°स+१,०००=५,००० II. १,५०°स+ ७५०५२,२५० =७,२५० । अव यदि वास्तविक संचय इस आधार पर होता है, यानी यदि उत्पादन वास्तव में इस परिवर्धित पूंजी से होता रहता है, तो अगले वर्ष के अंत में हमें यह प्राप्त होता है : I. ४,४००स+ १,१००+ १,१००३-६,६०० II. १,६०°स+ ८०°+ ८० ==8,८००। ८०°३= ३,२०० अब मान लीजिये कि I में संचय उसी अनुपात में होता रहता है, जिससे कि ५५०वे आय के रूप में खर्च होते हैं और ५५०वे संचित होते हैं। उस हालत में १,१०० 4 का प्रतिस्थापन पहले १,१०० IIस द्वारा होता है और उसी मूल्य के II के मालों के रूप में ५५० 14 का सिद्धिकरण करना होगा ; और इस तरह कुल योग १,६५० (प+वे ) होगा। किंतु जो स्थिर पूंजी II प्रतिस्थापित होनी है, वह केवल १,६०० के वरावर है; अतः वाक़ी