पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/४५८

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संचय तथा विस्तारित पैमाने पर पुनरुत्पादन . ४५७ की तुलना ." IIस में I(प+ वे/क) उससे वड़ा या छोटा यो उसके वरावर हो सकता है। किंतु II (स+वे ) की अपेक्षा I (प+वे/क) सदैव उतना छोटा होगा, जितना : II का वह अंश कि जो हर हालत में पूंजीपति वर्ग II द्वारा उपभुक्त होता है। यहां ध्यान में रखना चाहिए कि संचय के इस विवेचन में स्थिर पूंजी के मूल्य को, जहां तक वह पूंजी उस माल पूंजी के मूल्य का एक अंश है, जिसका उत्पादन उसकी सहायता से हुआ है, यथातथ्यतापूर्वक प्रस्तुत नहीं किया गया है। नवसंचित स्थिर पूंजी का स्थायी अंश इन स्थायी तत्वों की भिन्न-भिन्न प्रकृति के अनुसार माल पूंजी में केवल धीरे-धीरे और नियत समय पर ही प्रवेश करता है। इसलिए जब भी कच्ची सामग्री, अधतैयार माल , वगैरह माल उत्पादन में विशाल मात्राओं में शामिल होते हैं, तव माल पूंजी में अधिकांशतः परिवर्ती पूंजी के प्रचल स्थिर घटकों के प्रतिस्थापन समाहित होते हैं। (फिर भी प्रचल घटकों के विशिष्ट श्रावर्त के कारण सारी वात को प्रस्तुत करने के इस तरीके को अपनाया जा सकता है। तब यह माना जाता है कि प्रचल अंश उसे अंतरित किये स्थायी पूंजी के मूल्यांश के साथ वर्ष के दौरान इतनी अधिक वार श्रावर्तित होता है कि पूरित मालों की समुच्चित राशि मूल्य में वार्षिक उत्पादन में दाखिल होनेवाली समग्र पूंजी के मूल्य के बरावर होती है। ) लेकिन जहां भी मशीनी उद्योग के लिए केवल सहायक सामग्री का उपयोग किया जाता है और कच्चे माल का उपयोग नहीं होता, वहां श्रम तत्व को, जो प के बराबर है, माल पूंजी में उसके वृहत्तर घटक के रूप में ही पुनः प्रकट होना होगा। जहां लाभ की दर के परिकलन में वेशी मूल्य का हिसाब कुल पूंजी के आधार पर लगाया जाता है, चाहे स्थायी घटक नियतकालिक रूप में उत्पाद को अधिक मूल्य अंतरित करें, चाहे कम , वहां नियतकालिक रूप में सृजित किसी भी माल पूंजी के मूल्य के परिकलन में स्थिर पूंजी का स्थायी अंश केवल इस सीमा तक शामिल किया जाता है कि औसत रूप में वह छीज के कारण उत्पाद को मूल्य प्रदान करता है। ४. पूरक टिप्पणी II के लिए द्रव्य का मूल स्रोत स्वर्ण उद्योग I का प+बे है, जिसका IIस के एक अंश से विनिमय होता है। स्वर्ण उत्पादक का प+बे केवल इस सीमा तक II में प्रवेश नहीं करता कि वह वेशी मूल्य संचित करता है अथवा उसे उत्पादन साधन I में परिवर्तित करता है, यानी इस सीमा तक कि वह अपने उत्पादन का प्रसार करता है। दूसरी ओर, चूंकि स्वयं स्वर्ण उत्पादक के यहां द्रव्य संचय अंततोगत्वा विस्तारित पैमाने पर पुनरुत्पादन की तरफ़ ले जाता है, इसलिए स्वर्ण उत्पादन के वेशी मूल्य का जो भाग आय के रूप में खर्च नहीं किया जाता, वह II के यहां स्वर्ण उत्पादक की अतिरिक्त परिवर्ती पूंजी के रूप में पहुंच जाता है, और यहां नवीन अपसंचयों के निर्माण को बढ़ावा देता है अथवा I को प्रत्यक्ष विक्रय किये विना उससे क्रय करने के लिए नये साधन जुटाता है। स्वर्ण उत्पादन के इस I(प+वे ) द्रव्य में से सोने का वह अंश घटा देना चाहिए, जिसकी कच्चे माल वगैरह के रूप में, संक्षेप में अपनी स्थिर पूंजी के प्रतिस्थापन हेतु एक तत्व के रूप में कुछ II उत्पादन शाखाओं को जरूरत होती है। अपसंचयों के प्रारंभिक निर्माण का भावी विस्तारित पुनरुत्पादन के लिए एक से प्राप्त