पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/४५९

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कुन सामाजिर पूंजी का पुनरूत्पादन तथा परिचलन वल । नया II के बीन बिनिमय में विद्यमान रहता है: 1 के लिए केवल तब, जब Ja ग पर अंग II के हाय ममतुल्य ऋत्य के बिना एकपक्षीय ढंग से बेचा जाये और वहां वह पतिरिकता लियर पूंजी II का काम करे ; II के लिए तब , जब अतिरिक्त परिवर्ती पूंजी के मिलमिल में 1 की वही स्थिति होती है और इसके अलावा, जब I वेशी मूल्य का जो अंश प्राय के रूप में नचं करे, उसकी क्षतिपूर्ति IIत द्वारा न हो, अतः II का एक अंश उसके जरिये मरीदा जाये और इस तरह द्रव्य में तबदील किया जाये। यदि I(प+बे/क ) 1स से बड़ा हो, तो II के लिए आवश्यक नहीं कि II में से I ने जितने अंश का उपभोग किया है, उतने अंश का उसके साधारण पुनरुत्पादन के लिए मालों के रूप में प्रतिस्थापन किया जाये। सवाल यह है कि स्वयं पूंजीपति II के परस्पर विनिमय के क्षेत्र में किस हद तक अपसंचय हो सकता है, जहां इनके बीच का विनिमय II का परस्पर विनिमय ही हो मकता है। हम जानते हैं कि II के यहां प्रत्यक्ष संचय II के एक अंश के परिवर्ती पूंजी में सीधे परिवर्तन से होता है (जैसे I यहां वे का एक अंश स्थिर पूंजी में सीधे बदल जाता है)। II की विभिन्न व्यवसाय शाखाओं के अंतर्गत और वैयक्तिक पूंजीपतियों के लिए प्रत्येक व्यवसाय शाखा के अंतर्गत संचय के विभिन्न प्रायु संवर्गों में मामले की l की तरह की mutatis mutandis व्याख्या की जा सकती है। कुछ अभी अपसंचयन की मंज़िल में हैं, और वे क्रय किये बिना विक्री ही करते हैं ; अन्य पुनरुत्पादन के वास्तविक प्रसार पर पहुंच रहे हैं और वे बेचे विना खरीदारी ही करते हैं। वेशक अतिरिक्त परिवर्ती द्रव्य पूंजी पहले अतिरिक्त श्रम शक्ति में निवेशित की जाती है, किंतु इससे अतिरिक्त मजदूरों के उपभोग में पानेवाली अतिरिक्त उपभोग वस्तुओं के अपसंचयकर्तागों से निर्वाह साधन ख़रीद लिये जाते हैं। इनके पास से उनके अपसंचय निर्माण के pro rata द्रव्य अपने प्रस्थान बिंदु पर लोटकर नहीं पाता। ये लोग उसे जमा कर लेते हैं।