७४ पूंजी के रूपांतरण और उनके परिपय द्र ... हम यहां उसका उल्लेख मान्न करते हैं। उत्पादन तत्वों का माल में रूपान्तरण, उ का मा में रूपान्तरण उत्पादन क्षेत्र में सम्पन्न होता है, जव कि मा से उ में पुनःरूपान्तरण परिचतन क्षेत्र में घटित होता है। यह क्रिया मालों के साधारण रूपान्तरण से सम्पन्न होती है, किन्तु उसका सारतत्व समत्र रूप में पुनरुत्पादन प्रक्रिया का एक ही दौर है। पूंजी के परिचलन का रूप होने के नाते मा-द्र-मा में सामग्री का कार्य की दृष्टि से निर्धारित विनिमय सन्निहित होता है। इसके अलावा मा-द्र-मा के रूपान्तरण के लिए यह भी आवश्यक है कि मा, माल प्रमाना मा' के उत्पादन तत्वों के बराबर हो और ये तत्व अपने मौलिक पारस्परिक मूल्य सम्बन्ध बनाये रखें। इसलिए यह मान लिया गया है कि माल अपने-अपने मूल्य के अनुसार खरीदे ही नहीं गये हैं, वरन वृत्तीय गति के दौरान उनके मूल्य में भी कोई परिवर्तन नहीं होता। वरना यह प्रक्रिया अपनी सामान्य गति से पूरी नहीं हो सकती। द्र' में द्र पूंजी मूल्य का वह मूल रूप है, जिसे त्यागने के साथ फिर से धारण कर लिया जाता है। उ मा-द्र-मा उ में द्र ऐसा रूप है, जो प्रक्रिया के समाप्त होने से पहले ही त्याग दिया जाता है। यहां द्रव्य रूप पूंजी मूल्य के क्षणिक स्वतन्त्र रूप की हैसियत से ही प्रकट होता है। मा' रूप में द्रव्य रूप धारण करने को पूंजी उतना ही उत्सुक होती है कि जितना द्र' रूप में उसे त्यागने को। इस वेश को धारण करते ही वह अपने को पुनः उत्पादक पूंजी में रूपान्तरित कर लेती है। जब तक वह द्रव्य रूप में रहती है, तब तक वह पूंजी की हैसियत से कार्य नहीं करती और इस कारण उसके मूल्य में विस्तार नहीं होता। पूंजी परती पड़ी रहती है। द्र यहां परिचलन माध्यम का काम करता है, किन्तु पूंजी के परिचलन माध्यम का।* अपने परिपय के पहले रूप में (द्रव्य पूंजी के रूप में), पूंजी मूल्य का द्रव्य रूप जिस स्वतन्त्रता का आभास देता है, वह इस दूसरे रूप में विलुप्त हो जाती है। इस प्रकार यह रूप १ की समीक्षा है और उसे केवल एक रूप विशेष में परिणत कर देती है। यदि द्र' मा के दूसरे रूपान्तरण में कोई अड़चन पैदा हो, उदाहरण के लिए, यदि बाजार में उत्पादन साधन न हों, तो परिपथ में, पुनरुत्पादन प्रक्रिया के प्रवाह में उतना ही व्याघात उत्पन्न होता है कि जितना तव , जब माल पूंजी के रूप में पूंजी को जकड़े रखा जाता है। लेकिन यहां फ़र्क यह है कि पूंजी माल के अस्थायी रूप में जितनी देर रह सकती है, उससे अधिक देर द्रव्य रूप में रह सकती है। यदि वह द्रव्य पूंजी के कार्य न करे, तो इससे उसका द्रव्य होना समाप्त नहीं हो जाता। किन्तु यदि अपना माल पूंजी का कार्य सम्पन्न करने में उसे बहुत विलम्ब हो जाये, तो उसका माल होना अथवा सामान्य रूप से उपयोग मूल्य होना अवश्य समाप्त हो जाता है। इसके अलावा अपने द्रव्य रूप में उसमें उत्पादक पूंजी के अपने पहले रूप के स्थान पर दूसरा रूप धारण करने की क्षमता होती है, किन्तु यदि वह मा' के रूप में जकड़ी रखी जाये, तो वह हिल भी नहीं सकती।
- यहां मासं ने पाण्डुलिपि में यह लिखा था : “टूक के विपरीत।"-सं०