पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/७९

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पूंजी के रूपांतरण और उनके परिपथ कार्य हो जाता है। ऐसा इसलिए होता है कि पूंजी मूल्य यहां द्रव्य रूप में विद्यमान होता है, द्रव्य अवस्या यहां ऐसी अवस्था होती है, जिसमें औद्योगिक पूंजी स्वयं को अपनी एक मंजिल में पाती है और जो परिपय के भीतर प्रांतरिक संबंधों द्वारा निर्धारित होती है। साथ ही यह वात यहां एक बार फिर सत्य सिद्ध होती है कि औद्योगिक पूंजी के परिपथ में द्रव्य पूंजी द्रव्य के कार्यों के अलावा और कोई कार्य नहीं करती और द्रव्य के ये कार्य परिपथ की दूसरी मंजिलों से अपने अंतःसम्बन्धों के बल पर ही पूंजी कार्यों का महत्व प्राप्त करते हैं। द्र' को यो प्रस्तुत करना कि वह द्र से द्र का सम्बन्ध है, एक पूंजी सम्बन्ध है प्रत्यक्ष रूप में द्रव्य पूंजी का कार्य नहीं है, वरन माल पूंजी मा’ का कार्य है। यह मा अपनी वारी में, मा से मा के सम्बन्ध की हैसियत से उत्पादन प्रक्रिया का फल ही, उसके भीतर सम्पन्न होनेवाले पूंजी मूल्य के स्वविस्तार को ही प्रकट करता है। यदि परिचलन प्रक्रिया को जारी रखने में अड़चन पड़े, जिससे कि द्र को अपना द्र मा कार्य बाह्य परिस्थितियों के कारण, जैसे कि बाजार की परिस्थितियों, प्रादि के कारण रोकना पड़े, और इससे यदि उसे न्यूनाधिक समय के लिए द्रव्य रूप में रहना पड़े, तो हमारे सामने द्रव्य फिर अपसंचय के रूप में आ जाता है। साधारण माल परिचलन में भी जब भी वहां मा-द्र से द्र-मा तक संक्रमण में वाह्य परिस्थितियां बाधा डालती हैं, ऐसा ही होता है। यह अपसंचय का अनैच्छिक निर्माण है। वर्तमान प्रसंग में द्रव्य का रूप परती पड़ी हुई, अंतर्हित , द्रव्य पूंजी का रूप है। किन्तु हम अभी इस बात की अधिक चर्चा नहीं करेंगे। पर दोनों में कोई भी स्थिति हो, द्रव्य पूंजी का द्रव्य अवस्था में लगातार बने रहना अंतरायित गति का परिणाम ही होता है, और इससे कुछ अाता-जाता नहीं है यह अंतरायित गति अनुकूल है या प्रतिकूल , ऐच्छिक है या अनैच्छिक , द्रव्य पूंजी के कार्यों के अनुसार है या उनके विपरीत है। . , २. विस्तारित पैमाने पर संचय और पुनरुत्पादन उत्पादक प्रक्रिया अपने प्रसार का परिमाण मनमाने ढंग से कायम नहीं कर लेती, वरन वह प्रौद्योगिकी द्वारा निर्धारित होता है । इस कारण यद्यपि सिद्धिकृत वेशी मूल्य पूंजीकरण के लिए उद्दिष्ट होता है, तथापि वह बहुधा अनेक ऋमिक परिपथ पूरा करने पर ही ऐसा प्राकार ग्रहण कर पाता है (और तब तक उसे संचयित होना पड़ेगा), जो अतिरिक्त पूंजी के प्रभावी कार्य के लिए पर्याप्त हो अथवा जो कार्यशील पूंजी मूल्य के परिपथ में प्रवेश के लिए पर्याप्त हो। इस प्रकार वेशी मूल्य अपसंचय के रूप में जड़ हो जाता है, और इस रूप में वह गुप्त या अंतर्हित द्रव्य पूंजी बन जाता है - अंतर्हित इसलिए कि वह पूंजी की हैसियत से तव तक काम नहीं कर सकता, जब तक वह द्रव्य रूप में बना रहता है। इस प्रकार अपसंचय का निर्माण यहां 3 Oa . C.: 'गुप्त" शब्द भौतिकी में गुप्त ऊष्मा की धारणा से लिया गया है। अब इस धारणा का स्थान लगभग पूरी तरह ऊर्जा रूपांतरण के सिद्धान्त ने ले लिया है। इसलिए माक्र्स ने तीसरे भाग में (वाद के पाठान्तर में ) दूसरा शब्द इस्तेमाल किया है, जो स्थितिज ऊर्जा की धारणा से लिया गया है। यह शब्द है “स्थितिज" अथवा आभासी पूंजी" जो द'एलवेर के आभासी वेग के सदृश्य है। -फे० एं० (0