पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/८१

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पूंजी के रूपांतरण और उनके परिपथ श्र सा उ यह सून उ' की तुलना द्र ... संचय कर लिया जाता है। उ मा' - द्र' - मा' < उस उत्पादक पूंजी की व्यंजना करता है, जो विस्तारित पैमाने पर और अधिक मूल्य के साथ पुनरुत्पादित होती है और जो परिवर्धित उत्पादक पूंजी की हैसियत से अपना दूसरा परिपय शुरु करती है अथवा - जो एक ही बात है - अपने पहले परिपथ को फिर से चालू करती है। जैसे ही यह दूसरा परिपय शुरू होता है, उ फिर हमारे सामने प्रारम्भ विन्दु के रूप में आता है; केवल यह उ पहले उ की अपेक्षा अधिक बड़ी उत्पादक पूंजी है। इसलिए यदि द्र द्र सून में दूसरा परिपय द्र' से शुरू होता है, तो यह द्र', द्र के समान , निश्चित परिमाण की पेशगी द्रव्य पूंजी के समान कार्य करता है। पहली वृत्तीय गति जिस द्रव्य पूंजी से शुरू की गई थी, उससे यह द्रव्य पूंजी बड़ी होती है ; किन्तु जैसे ही वह पेशगी दी द्रव्य पूंजी का कार्य अपना लेती है, वैसे ही वेशी मूल्य के पूंजीकरण द्वारा उसकी वृद्धि की सारी चर्चा समाप्त हो जाती है। यह उद्भव उसके परिपय को शुरू करनेवाली द्रव्य पूंजी के रूप में निर्मूल हो जाता है। जैसे ही उ नये परिपय के प्रारम्भ विन्दु के रूप में कार्य करने लगता है, यह बात उस पर भी लागू हो जाती है। अगर हम उ द्र' से अथवा पहले परिपथ से करें, तो हम देखते हैं कि उनका अर्थ एक जैसा विल्कुल नहीं है। द्र द्र को एक अलग-थलग परिपथ के रूप में देखें, तो हम पायेंगे कि वह यही प्रकट करता है कि द्रव्य पूंजी द्र (अथवा द्रव्य पूंजी के रूप में अपना परिपथ पूरा करनेवाली औद्योगिक पूंजी), द्रव्य उत्पन्न करनेवाला द्रव्य, मूल्य उत्पन्न करनेवाला मूल्य है। दूसरे शब्दों में वह वेशी मूल्य उत्पन्न करता है। किन्तु उ परि- पय में वेशी मूल्य उत्पादित करने की प्रक्रिया पहली मंजिल की समाप्ति पर, उत्पादन प्रक्रिया की समाप्ति पर पूरी हो चुकी होती है। दूसरी मंज़िल म'-द्र' (परिचलन की पहली मंज़िल ) पार करने पर पूंजी मूल्य+वेशी मूल्य पहले ही सिद्धिकृत द्रव्य पूंजी के रूप में, द्र' के रूप में - जो पहले परिपथ के अन्तिम चरम के रूप में प्रकट हुआ था - अस्तित्व में आ चुके होते हैं। वेशी मूल्य उत्पन्न किया जा चुका है, यह वात उ उ सूत्र हमारे पूर्वविवेचित मा - द्र-मा सूत्र द्वारा व्यंजित होती है ( देखें विस्तारित सूत्र , पृष्ठ ४७ ) . जो अपनी दूसरी मंजिल में पूंजी परिचलन के बाहर जा पड़ता है और वेशी मूल्य के परिचलन को आय के रूप में व्यंजित करता है । अतः इस रूप में , जहां सारी गति उ ... उद्वारा प्रकट की जाती है और फलतः जहां दोनों चरमों के बीच मूल्यगत भेद नहीं होता, पेशगी मूल्य का स्वप्रसार , वेशी मूल्य का उत्पादन उसी प्रकार व्यंजित होता है, जिस प्रकार द्र द्र में। अन्तर केवल यह है कि मा-द्र' की क्रिया, जो द्र द्र में आखिरी मंजिल और परिपथ की दूसरी मंजिल बनकर पाती है, वह उ उ में परिचलन की पहली मंजिल का काम करती है। इस पुस्तक का पृष्ठ ७५ देखें। -सं०