पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/८६

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उत्पादक पूंजी का परिपथ ८५ पूंजी को परिवर्तित होना है, कीमत उस स्तर से ऊपर चढ़ जाये , जो परिपथ की शुरूआत के समय प्रचलित था, तो संचय निधि के रूप में कार्यशील अपसंचय द्रव्य पूंजी के अथवा उसके अंश के स्थान पर इस्तेमाल किया जा सकता है। इस प्रकार द्रव्य संचय निधि परिपथ में गड़वड़ियों का प्रतिसंतुलन करने के लिए एक आरक्षित निधि का काम करती है। प्रारक्षित निधि ख़ास उस निधि से भिन्न है, जो ख़रीदारी और अदायगी के माध्यम का काम करती है, जिसका विवेचन उ उ परिपथ में हो चुका है। ये माध्यम कार्यशील द्रव्य पूंजी का अंश हैं (अतः सामान्यरूपेण प्रक्रिया से गुजरनेवाले पूंजी मूल्य के अंश के अस्तित्व के रूप हैं), जिसके हिस्से भिन्न-भिन्न समय पर ही क्रमशः अपने कार्य प्रारम्भ करते हैं। उत्पादन की निरन्तर प्रक्रिया में प्रारक्षित द्रव्य पूंजी का सदैव निर्माण होता रहता है, क्योंकि एक दिन पैसा आता है और अदायगियां कुछ समय बाद ही करनी होती हैं, तो एक दिन ढेर का ढेर माल बेच दिया जाता है, जब कि और बड़ी ख़रीदारियां काफ़ी समय बाद ही करनी होती हैं। इन अन्तरालों में प्रचल पूंजी का एक हिस्सा निरन्तर द्रव्य रूप में वना रहता है। दूसरी ओर प्रारक्षित निधि पहले से कार्यरत पूंजी का संघटक अंश नहीं है , अथवा और निश्चित शब्दों में कहें, तो वह द्रव्य पूंजी का संघटक अंश नहीं है। कहना चाहिए कि वह संचय की प्रारम्भिक मंज़िल में पूंजी का , अभी सक्रिय पूंजी में रूपान्तरित नहीं हुए वेशी मूल्य का अंश है। जहां तक शेष वातों का प्रश्न है, यह समझाना आवश्यक नहीं है कि आर्थिक तंगी में पड़ने पर पूंजीपति यह विचार करने नहीं बैठता कि उसके पास जो द्रव्य है, उसके विशेष कार्य क्या हैं। वह सीधे-सीधे अपनी पूंजी को प्रचल बनाये रखने के लिए पास में जो भी द्रव्य होता है , उसे काम में लाता है। इस तरह हमारे उदाहरण में द्र, ४२२ पाउंड के बराबर है, द्र ५०० पाउंड के। यदि ४२२ पाउंड की पूंजी का एक हिस्सा ऐसी निधि के रूप में विद्यमान हो , जो ख़रीदारी और अदायगी के साधनों का काम दे, जो आरक्षित द्रव्यं हो, तो- -अन्य परि- स्थितियों के समान रहने पर- इरादा यह होता है कि वह परिपथ में पूरी तरह प्रवेश करे और इसके अलावा इस प्रयोजन के लिए पर्याप्त हो। किन्तु आरक्षित निधि ७८ पाउंड वेशी मूल्य का एक अंश है। ४२२ पाउंड पूंजी के परिपथ में वह उसी सीमा तक प्रवेश कर सकती है कि यह परिपथ ऐसी परिस्थितियों में घटित होता है, जो पहले जैसी नहीं रहतीं, क्योंकि वह संचय निधि का अंश है और यहां पुनरुत्पादन के पैमाने में किसी विस्तार के विना सामने आता है। द्रव्य संचय निधि का अर्थ है अंतर्हित द्रव्य पूंजी का अस्तित्व , अतः द्रव्य का द्रव्य पूंजी में रूपान्तरण । उत्पादक पूंजी के परिपथ के लिए सामान्य सूत्र निम्नलिखित है। इसमें साधारण पुनरुत्पादन और उत्तरोत्तर विस्तारित पैमाने पर पुनरुत्पादन दोनों शामिल हैं : २ .मा-द्र। द्र-मार, उ (उ) यदि उ उ के बराबर हो, तो द्र २) में द्रवियुत द्र के बरावर है। यदि उ उ के बराबर होता है, तो द्र २) में द्रवियुत द्र से अधिक होता है। दूसरे शब्दों में द्र पूर्णतः अथवा अंशतः द्रव्य पूंजी में रूपान्तरित हो जाता है। उत्पादक पूंजी का परिपथ वह रूप है, जिसमें क्लासिकी राजनीतिक अर्थशास्त्र प्रौद्योगिक पूंजी को वृत्तीय गति का परीक्षण करता है। 1 १ . श्र उसा