पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/९६

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माल पूंजी का परिपथ 1 , उत्पादक पूंजी उ के अस्तित्व के रूपों की हैसियत से माल तत्व श्र और उ सा , जिनसे उत्पादक पूंजी उ वनती है, वैसे ही रूप के नहीं होते , जैसा विभिन्न माल बाजारों में होता है, जहां वे लिये जाते हैं। वे अव संयुक्त हो जाते हैं और इस प्रकार संयुक्त होकर वे उत्पादक पूंजी के कार्य कर सकते हैं। मा का केवल इस रूप ३ में ही स्वयं परिपथ के भीतर मा के पूर्वाधार की हैसियत से प्रकट होने का कारण माल रूप में पूंजी का उसका प्रारंभ विंदु होना है। परिपथ का समारंभ मा' के उन मालों में रूपांतरण द्वारा होता है, जो उसके उत्पादन तत्व हैं (जिस हद तक इसका लिहाज़ किये बिना कि वह वेशी मूल्य के योग से परिवर्धित हुआ है या नहीं, वह पूंजी मूल्य की तरह कार्य करता है)। किंतु इस रूपांतरण में परिचलन की सारी प्रक्रिया मा-द्र – मा (= श्र + उ सा) समाहित है और वह उसका परिणाम है। मा यहां दोनों छोरों पर स्थित है ; किंतु दूसरा छोर, जो अपना मा रूप द्र मा द्वारा वाहर से , माल वाज़ार से प्राप्त करता है , परिपथ का अंतिम छोर नहीं है, वरन उसकी केवल उन दो पहली मंज़िलों का छोर है, जो परिचलन प्रक्रिया में समाविष्ट हैं। उसका परिणाम उ है, जो इसके वाद अपना कार्य , उत्पादन की प्रक्रिया , संपन्न करता है। इस प्रक्रिया के फलस्वरूप ही, अतः परिचलन प्रक्रिया के फलस्वरूप नहीं, मा' परिपथ के अंतस्थ विंदु की तरह और उसी रूप में प्रकट होता है, जिसमें प्रारंभ विंदु मा' था। दूसरी ओर , द्र द्र' और उ. उ में अंतिम छोर द्र' और उ परिचलन प्रक्रिया के सीधे परिणाम हैं। इसलिए यहां केवल अंत में यह पूर्वकल्पना की जाती है कि कभी द्र' और कभी उ दूसरों के हाथों में विद्यमान होते हैं। चूंकि यह परिपथ छोरों के बीच बनता है, इसलिए न तो एक प्रसंग में द्र, और न दूसरे प्रसंग में उ द्र का दूसरे व्यक्ति के द्रव्य और उ का दूसरी पूंजी की उत्पादन प्रक्रिया की हैसियत से अस्तित्व - इन परिपथों के पूर्वाधार की तरह प्रकट होता है। इसके विपरीत मा' मा' दूसरों के हाथ में दूसरों के माल की हैसियत से मा (= श्र + उ सा) के अस्तित्व की पूर्वकल्पना करता है। ये माल प्रारंभिक परिचलन प्रक्रिया द्वारा परिपथ में खिंच आते हैं और उत्पादक पूंजी में रूपांतरित हो जाते हैं, जिसके कार्य के फलस्वरूप मा' फिर परिपथ का समापक रूप बन जाता है। लेकिन ठीक इसीलिए कि मा ... मा' परिपथ अपनी परिधि में मा ( = श्र + उ सा) के रूप में दूसरी औद्योगिक पूंजी के अस्तित्व की पूर्वकल्पना करता है- और उ सा में अन्य विभिन्न पूंजियां समाहित होती हैं, उदाहरण के लिए, हमारे प्रसंग में मशीनें, कोयला, तेल, इत्यादि - वह इसका तक़ाज़ा करता है कि उसे परिपथ का सामान्य , अर्थात वह सामाजिक रूप ही न माना जाये, जिसमें प्रत्येक प्रौद्योगिक पूंजी (पहली बार लगाये जाने के अलावा ) की जांच की जा सकती है, अतः उसे गति का सभी वैयक्तिक प्रौद्योगिक पूंजियों के लिए सामान्य रूप ही नहीं, वरन साथ ही वैयक्तिक पूंजियों के योग की गति का रूप और फलतः पूंजीपति वर्ग की कुल पूंजी की गति का, ऐसी गति का रूप भी माना जाये, जिसमें प्रत्येक वैयक्तिक प्रौद्योगिक पूंजी केवल आंशिक गति की हैसियत से प्रकट होती है, जो अन्य गतियों 1