पृष्ठ:कालिदास.djvu/१२

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कालिदास। _ "It is impossible even for the Sans- crit scholar, who has not lived in India, to oppreciate fully the merits of this later Poetry, much more so for those who can only become acquainted with it in trans- lations." अर्थात् संस्कृत का चाहे कोई जितना विद्वान् हो यदि यह हिन्दुस्तान में नहीं रहा तो भारत, रामायण और अन्यान्य काव्यों के गुणोत्कर्ष का पूरा पूरा अन्दाज़ा करना उसके लिए असम्भव है। जिन्होंने इन कार्यों का परिचय, सिर्फ अनुवाद पढ़कर ही, प्राप्त किया है उनके लिए तो यह और भी असम्भव है। इसके कुछ दूर भागे अापने लिखा है कि वे एक ऐसे विद्वान् को जानते हैं जिसने भारतीय संस्कृत-कायों के अगाध समुद्र में ऐसी डुबकी लगाई है कि उसे अव और किसी भाषा के फायों में श्रानन्द “ही नहीं मिलता। इससे मालूम होता है कि अध्यापक मेकडानल 'संस्कृत-साहित्य के महत्व और विदेशी विद्वानों की न्यूनता 'को अच्छी तरह समझते हैं। इस गुण-प्राहकता और यथार्थवाद के लिए हम आपका हृदयसे अभिनन्दन करते हैं। श्रापके इन्हीं गुणों से उत्साहित और साहसवान् होकर हम आपसे कालिदास के विपयमें कुछ निवेदन करना चाहते हैं।