पृष्ठ:कालिदास.djvu/१४०

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कालिदास ।] शब्द-चित्र बनाकर तवारा उन्हें सामाजिकों को यह करा देने की विद्या भवभूति को खूब ही साध्य थी। कारा रस का-यत्र तत्र शृङ्गार और धीर का भी-भवभूति ने जा जहाँ उत्थान किया है यहाँ यहाँ घटना-मम के अनुसार उर रस का धीरे धीरे तूफान सा पाया है। कालिदास ने जिस पात को पड़ी थ्यों के साथ थोड़े में कह दिया है उसी भवभूति ने बेहद पढ़ाया है। मनोभायों का पढ़ाकर पर फरना कहीं अच्छा लगता है, कहीं नहीं यश लगता देश, काल, पात्र और अपस्या का सयाल रखकर प्रसहोणार विषय का प्राकुचन किंया प्रसारण किया जाना चाहिए | युख के लिए किसीको उत्तजित करने के लिए पीर-रस- परिपोषक लम्बी पक्तृता अमामयिक और अशोभित नही होती। परन्तु सो मनुष्य इष्ट वियोग अथवा अन्य किमी कारण से व्यथित है उसके मुग से निकली हुांधाराचाही पस्मृता अमाहतिक मालूम होती है। पाहे में अपनी प्पया-कथा कहकर घुप हो जानाही मचा की गमीग्ता का दर्शक है। एकुलला केरियांग में दुष्यन्त ने, भीर मालती के वियोग में माधय ने, जो पुच कदा पहास पाना ममान है कि निम पात को मपनि यवनाओं में, लमं सम्ये ममामा और चुने हुए पदों में, बहकर भी पादों का उतना मनोनयन पर राधे, सोनो