पृष्ठ:कालिदास.djvu/२०३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

[ कालिदास की वैवाहिकी कविता ।

सामने पेश किया। जिस जमाने का हाल कालिदास ने लिया है, जान पड़ता है, उस ज़माने का रग-ढङ्ग भी माज- कल का पेसा था। किसी यड़े अफसर से भेंट करने में जो जो नाज-नखरे भाजकल होते हैं ये उस जमाने में भी होते थे। लोकपालो और देवताओं ने शङ्कर के दरयान नन्दी से अथ यहुत कुछ मिन्नत-भारत को तय कही आपने अपने मालिक से मुलाकात कराई। कायदे के साथ आप एक एक को शंकर के सामने ले गये और कहा-"यह इन्द्र आपको प्रणाम करते हैं, पद चन्द्र श्रापके सामने हाज़िर है, यह उपेन्द्र आपके साथ चलने की अभिलाषा से आये हैं। इस प्रकार परिचय कराये जाने पर सयके प्रणाम और नमस्कार आदि का उत्तर महादेष ने किस प्रकार दिया, सो सुनिए-

कम्पेन मनः रातपत्रयोनि

दाचा हरि वृश स्मितेन।

पाटोकमारंप सुरानपान

सम्भाश्यामाप्त ययापधानम्।

सिर हिलाकर ब्रह्मा के, सम्भाषण से विष्णु के, मुसकान से इन्द्र के, और सिर्फ एक नज़र से सकर और और देवताओं के प्रणाम और ममस्कार ग्रादि का उत्तर

सदर ने दिया। अर्थात् जो जैसा था उसकी दुहाई-पहा

१६५