पृष्ठ:कालिदास.djvu/८०

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कालिदास। थे-एफ मामड़, दूसरा यमुशन्धु। हमी यमुबन्धु का शिश दिमाग II पुष्पपुर, प्रांत प्राचीन पटना, में दी दिनाग ने पमुयन्धु का शिष्यत्य ग्रहण किया था। यसुयन्धु और दिङनाग मे दी नालन्द-विश्वविद्यालय की स्थापना की थी। दिनाग के न्यायशास्त्र का नाम प्रमाण- सगुपय है। पोदाचार्य पमुयन्धु स्कन्दगुप्त-विक्रमादित्य की सभा में थे और उनके गुरु मनोरय कुमारगुप्त को समा में। परमार्थ नामक पण्डित मगध देश से चीन गये थे। यौन-धर्म के प्रचार के लिए घे नरेन्द्रगुप्त पलादित्य द्वारा भेजे गये थे। ५६ ईसवी में ये चीन में परलोकगामी हुए । परमार्थ का लिखा हुआ पसुयन्धु का एक जीवनचरित है। उसी में लिखा है कि यमुयन्धु स्कन्दगुप्त-विक्रमादित्य के सभा-पण्डित थे। उधर हुनसान ने अपने भ्रमण-वृत्तान्त में लिखा है कि मनोरथ मगध-नरेश कुमार-गुप्त की सभा में शास्त्रार्थ करने गये थे। यहाँ पे अन्यायपूर्वक परास्त किये गये। इस कारण उन्होंने मान्महत्या कर ली और इस अन्याय की सूचना, मरने के पहले, उन्होंने अपने शिष वसुबन्धु को दी। इससे यह प्रमाण मिला कि कुमारगुप्त के राजत्वकाल में घसुपन्धु और दिङनाग दोनों ही विद्यमान् धे। अन्याय- पूर्वक किये गये मनोरथ के पराजय में कालिदास भी शामिल थे। अपने गुरु के गुरु मनोरय पण्डित के परामय का