पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/१०

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कारकों को ब्रजभाषानुकूल बनाना उचित समझा गया। उदाहरण के लिये वही पूर्व-लिखित-"राम, स्याम, कॉन, धुनि, मुनि, भाँनन, गॅन, सॅम," के बाद कारकों के रूप 'के, के, को, कों, सों' आदि-आदि निवेदन किये जा सकते हैं। ये ब्रजभाषा की प्राण कोमल अनुरणन-ध्वनि के साथ-साथ पश्चिमी लेखन पद्धति के प्रति अनुकूल और स्वानुभूत प्रयोगों से ससद्ध हैं। सचमुच यदि बजभाषा के सहज माधुर्य का रसास्वादन किया जा सकता है तो मोहन को मोहन, सोहन को सोहन, राम को रॉम, स्याम को स्याँम की सानुनासिकता उच्चारण विधि के साथ ही किया जा सकता है, क्योंकि यह अनुरणन-ध्वनि ब्रजभाषा के अनुकूल है,उसकी प्राण है। हम भाषा प्रणाली के विपरीत प्राकारांत शब्द घोड़ा को घोड़ो' तथा सीता को सीता बनाने के पक्षपाती नहीं,अपितु भाषा के माधुर्य पूर्ण शब्दोच्चारण के अनुकरण रूप शब्द सुसज्जित करने के पक्ष में हैं।

श्री दास जी कृत काव्य-निर्णय की पूर्व से लेकर पर तक के सभी इतिहास-कारों ने मुक्त कंठ से प्रशंसा की है, फिर भी आपके अग्रगण्य प्रशंसकों में माननीय स्व० श्रीरामचंद्र शुक्ल का नाम लिया जा सकता है और अंतिम प्रशंसक हैं डा० नगेंद्र'। फिर भी अभी तक इस धूल भरे हीरे की परख ठीक रूप से नहीं हो सकी है। मालोचना की जिलो बहुत कुछ बाकी है, जिसे इस ग्रंथ की 'भूमिका' रूप में डा० 'सत्येंद्र ने बड़ी उहापोह के साथ प्रस्तुत की है,प्रतः हार्दिक धन्यवाद...। वास्तव में वे इसके अधिकारी विद्वान हैं, हम जैसे इधर-उधर से ले भगने वाले नहीं। इसलिये दास जी के प्रति जो भी उन्होंने साधिकार लिखा है,वह उत्तम है,सुंदर है और विद्वजनों को अनुकरणीय तथा मननीय है।

स्व. पं० पसिंह शर्मा ने 'विहारी सतसई के भमिका-भाग में उसका दोष-परिहार लिखते हुए एक 'शेर' उद्धृत किया है :

"ऐब भी इसका कोई आखिर करो यारो बयाँ। सुनते-सुनते खूबियाँ जी अपना मतलाने लगा।"

बात बहुत कुछ सत्य है। अपने मुँह मियाँ मिळू बनना तो सहज है, किंतु ऐब (भूल) बतलाना और वह भी अपना हरे...हरे..., फिर भी इतना तो कहा ही जायगा कि अनेक कवि-कोविदों की विविध सुंदर सूक्तियों के संजोने में उन्हें,

१. बिहारी, ले०-विश्वनाथ प्रसाद मिश्र, एम० ए० सं० २००७ वि० का संस्करण, पृ० १७७। २. रामचरित मानस, (कल्याण का विशेषांक-मानसांक) सं०-लददुलारे वाजपेयी। ३.हिंदी साहित्य का इतिहास-पं० रामचद्र शुक्ल, पृ. २७७। ४. हिंदी में रीति-सिद्धत डा० नगेंद्र, पृ० १५०। ३. बिहारी सतसई भूमिका १०-१०५।