पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/११

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यत्र-तत्र उद्धृत करने में पुनरुक्ति अवश्य हो गयी है। एक-दो छंद, दो-एक बार आवश्यकता से अधिक तो नहीं, पर उद्धृत अवश्य किये गये हैं। वे वहाँ फिट है, उनसे तत्तद् स्थानों की शोभा भी अवश्य बढ़ी है, पर भूल, भूल ही है। इसी प्रकार सांकेति-चिन्हों के बहुली करण के प्रति भी कहा जा सकता है। इनके अतिरिक्त अन्य भूलें विद्वज्जन प्रेक्षणीय और विचारणीय है.........।

अंत में पुन: उन ज्ञाताज्ञात स्वनामधन्य ग्रंथ-प्रणेताओं से क्षमा चाहता हूँ, जिनके उद्धरणों से,---अछूती सरस सूक्तियों से भली-बुरी आलोचना के साथ सँजोया है तथा संपादित ग्रंथ की शोभा में चार चाँद लगाये हैं। अतः इदं :

मथुरा

दान एकादशी
-जवाहरलाल चतुर्वेदी,
 
सं० २०१३