पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/११२

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बनता-विलास ऑन कीन्हे,' हैं मुनीसन के, नींप नीकी कास लखि फैली निज बास में ॥ वि०-"दासनी ने इस कक्ति-द्वाय 'उद्दीपन-विभाव' का वर्णन किया है । उद्दीपन विभाव-"रसहि अगावै दीप-ज्यों, 'उद्दीपन' कहि सोइ ।" ये उद्दीपन दो प्रकार के होते हैं,-'देवी' और 'मानुषी'। अस्तु,- सखा, सखी, दूती, ऋतुएँ, वन-उपवन, केलि-कुज, तड़ाग, एकांत-स्थल, पवन, चंद, चाँदनी-रातें, चंदन, भ्रमर-कोलिल, गान-वाद्य श्रादि-श्रादि अनेक प्रकार के उद्दीपन कहे गये हैं। अनुभाव उदाहरन 'सवैया' जथा- जी बँधि-ही बँधि जात है ज्यों-ज्यों सु नींबीतनीन के बाँधति"-छोरति । 'दास' कटीले है गान कँप, बिहँसोंही- लजोंही लसै हग सों रति ॥ भोंह मरोरति, नॉक सिकोरति, चीर निचोरति औ चित चोरति । प्यारे गुलाब के नीर में बोरत, प्रिया पलटें रस भीर में बोरति" ॥ वि०-"जिन चेष्टाओं के प्रादुर्भाव से रस की अनुभूति हो, उन्हें अनुभाव कहा गया है। अथवा-'श्रालंबन-उद्दीपनादि कारणों से हृदय में जागृत रति- भाव को प्रकट करने वाले हाव-भाव, मुसिक्यॉन, कटाक्ष और भोंहों का मरो- ड़ना-श्रादि शृंगार-रस के अनुभाव कहे जाते हैं। संस्कृताचार्यों ने इन्हें- सात्त्विक, कायिक और मानसिक अथवा कायिक, मानसिक और आहार्य-श्रादि तीन प्रकार का तथा ब्रजभाषा के प्राचार्यों ने कायिक, मानसिक, श्राहार्य और साविक रूप चार प्रकार के कहे हैं । यथा- पा०-१. (भा० जी०) कीन्ही हैं, मुनीप निसि... (३०) कीन्हों हैं मुनीपनि, सुनी- पनि की वास। २. (भा० जी०) जीव धों-ही बॅधि...। ३.(भा० जी०) नीबि . । ४.(३०) बांधती-छोरती। ५. (भा० जी०) है...। ६. (भा० जी०) बिहेंसोंहि लजोंहे.... ७. (३०) खों रती। (सं० प्र०) लों रति । ८. (३०)...मरोरती, नॉक सिकोरती, चीर निचोरती, भी चित-चोरती। ६.(प्र०-२) बोरी...। (३०) (भा० जी०) बोरयौ । १०. (३०) बोरती ।