पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/१५

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का इतिहास' में,' डा. रसाल ने अपने 'हिंदी साहित्य के इतिहास में,किया है। खोजरिपोर्ट में कहा गया है कि "इस प्रथ के कर्ता कवि भिखारी-दास कायस्थ हैं । ये काशिराज उदितनारायण सिंह के आश्रित थे......इत्यादि ।” उक्त प्रथ जिसको पृ०सं० ५ है. हमने भी काशिराज के सरस्वती-भंडार में देखा है । अस्तु, पुस्तक के अंत में एक सोरठा दिया गया है, जो इस प्रकार है :

      "सुकवि भिखारीदास, कियो प्रध छंदारनौ।
       तिन छंदन-परकास, भौ महाराज-पसंद हित॥"

इससे ज्ञात होता है कि यह ग्रंथ भिखारीदास जी के प्रथ 'छंदार्णव'(पिंगल) पर किन्ही अन्य कवि-द्वारा रचित प्रकाश है-टीका है, जो भिखारीदास जी की मृत्यु के बाद लिखी गयी है। बाग-बहार का श्राप-कृत कथन केवल शिवसिंह ने ही अपने 'सरोज' (पृ.४११) में किया है, अन्य किसी ने नहीं, अतः यह संदेहात्मक रचना है। फिर भी किन्हीं महानुभाव का कहना है कि बाग-बहार भिखारीदास कृत अमरकोश (संस्कृत) के अनुवाद 'नाम-प्रकाश' वा 'अमर-प्रकाश' का ही दूसरा नाम है। राग-निर्णय के प्रति इतना ही कहा जा सकता है, कि यह दासजी-कृत कृति अल्प (खंडित) रूप में ... ग्राम साहीपुर नौलखा, पो० हड़िया, जिला प्रयाग से मिली है, जिसकी पत्र सं०-१८, तथा छंद सं०-१७५ है। विषय,पुस्तक के नाम से स्पष्ट है। नाम-साम्य भी है, जैसे-"काव्य-निर्णय,श्रृंगार-निर्णय और राग-निर्णय ।" भाषा भी मजी हुई साफसुथरी और सानुप्रास दास जैसी है। एक उदाहरण, जैसे:-

राग-काफी

“एरी गरब गहेली हो, तन-जोबन गरव न कीजै । जैसे कुसुभ-रंग चटकीलो, छलक-छलक छिन छीजै ॥ ज्यों तरुवर की छाँह मध्य दिन, तैसें ही गुंनि लीजै। कहत 'दास' पिय के मिलबे बिन, कैसे कै जिय जीजै ॥"

फिर भी उक्त प्रथ की जब तक कोई दूसरी प्रति न मिले तब तक दास जी वृत होने में संदेह ही है।

१. हिंदी भाषा और साहित्य का इतिहास, पृ० ३८५ । २. हिंदी साहित्य का इतिहास, पृ०-४५० । ३.१० लि. हि.प्र.का संवित विवरण (श्याम सुंदर वास) पृ०-१११। ४. प्रकाशित खोज-रिपोर्ट (प्र.-18 से स.-१९७१)ना०प्र० स० काशी।