पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/१९२

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काव्य-निर्णय १५७ 'दास' के ईस करें न मॅने,' जहँ बैरी मनोज हकूमत बारौ। छाती के ऊपर ब्याधि को भोन उठाबत राज-सँनेह तिहारौ।। वि०--"दासजी ने यहां न्याधि रूप भवन को उठाने-बनाने वाले स्नेह रूप राजमिस्त्री (कारीगर) का वर्णन कर 'अर्थ-चित्र' की रचना रची है।" "इति श्री कलाधर कलाधर बंसावतंस श्री मन्महाराजकुमार बाबू हिंदूपति विरचिते 'काम्य-निरनए' गुनीभूतादि व्यंग बरननोनाम सप्तमोल्लासः॥" पा०-१. (सं०-प्र०)...करै न मनोज । (भा० जी०)...को ईस के रेन मनोज...! . २. (भा० जी०) (प्र० मु०) के...! ३. (३०) (प्र० मु०) उठावतो...।