पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/१९८

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१६३ काव्य-निर्णय बाय) नामक तोन प्रकार की वर्णन की है। कोई-कोई इसके 'एक धर्मा' और 'अनेक धर्मा' अथवा मिन्नधर्मा नाम से दोही भेद मानते हैं, किंतु दासजी ने पूर्व-लिखित पाँचों प्रकार की 'मालोपमा' का यथाक्रम वर्णन किया है ।" उदाहरन अँनेक की एक ते जथा- नेन, कमल-दल से बड़े, मुख प्रफुलित ज्यों कंजु । कर-पद कोमल कंज-से', हियो कंज-सौ मंजु ।। वि०-"यहाँ दासजी ने नेत्र, मुख, कर, पद और हृदय को कमल पुष्प के विविध अवयवों-दल, प्रफुल्लित, कोमल और मनोहरता श्रादि की समता दी है, इसलिये 'अनेक को एक से मालोपमा है।" एक की अनेक ते लच्छन जथा- जहाँ एक की अनेक वह भिन्न धरॅम ते जोइ । कहूँ एकही धरंम ते, 'पूरन-माला' होइ।। __भिन्न धरम की मालोपमा जथा- मरकत से दुतिबंत हैं, रेसम से मृदु बॉम । निपट' महीन मुरारि-से, कच काजर से स्याँम ॥ वि०-"दासजी ने 'एक को अनेक' रूप मालोपमा के 'भिन्नधर्मा' और “एक धर्मा' दो रूपों का कथन किया है। अतः आपने प्रथम 'भिन्न धर्मा' रूप मालोपमा का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए "कामिनी के कचों-बालों को मरकत (नील ) मणि से युतिवान्, रेशम से मृदु-कोमल, मुरारि ( कमल-तंतु ) से बारीक और काजल से भी श्याम ( काले ) रूप विभिन्न धर्मों से युक्त उपमा दी है।" अतः भिन्नधर्मा मालोपमा है।" ___एक धरम की मलोपमा यथा- सारद, नारद पारद-अंग-सो, छोर-तरंग-सी, गंग की धार-सी। संकर-सल-सी, चंद्रिका-फैल-सी, सारस-रैल सी, हंस-कुमार-सी। "दास'प्रकास-हिमाद्रि-बिलास-सी, कुंद-सी, कास-सी,मुक्ति-भंडार-सी। कीरति हिंदुनरेस की राजति, उज्जल चार चमेली के हार-सी॥ पा०-१. (३०) भय भनेक को एक...। २. (३०) सौ...। ३. (३०) एक की भनेक...। (प्र० मु०) अनेक की एक मालोपमा । ४. (३०) चिकन महिन...। ५. (३०) (प्र० मु०) तर...। ६. (प्र०) (प्र० मु०) काम-सी...। ७. (०) (प्र० मु०) हिन्दू नरेश...। प.(०) की...।