पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/२०८

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काम्य-निर्णय १७३ अन्य प्रतीप जथा- उपमों को जु' अनादरै, बरनि पादरै देखि । समता देहन नॉम ले, तऊ 'प्रतीप अवरेखि ।। वि०-दास जी की यह सूक्ति 'द्वितीय प्रतीप' का लक्षण है, यथा - "उपमेह को उपमान ते, श्रादर ज न होह।" अर्थात् उपमेय का उपमान द्वारा अनादर किया जाय और जैसा कि दास जी ने नोचे उदाहरण कहा है।" द्वितीय-उपमान के अनादर को उदाहरन जथा- बाग-लता मिल लेइ किन, भौरन प्रेम-समेत । श्रावति पदमिनि पाँम-दिग, फिर न लहैगो सेत ।। तृतीय सँमता न दियो उदाहरन जथा-- द्विज' गन को मात्रै बड़ौ, देबन को प्रिय-प्रॉन । ता रघुपति-मागे कहा सुरपति कर गुमाँन । वि०-"यहाँ उपमेय श्री राम से उपमान सुरपति ( इद्र ) को कुछ हीन वर्णन किया है, जिससे तीसरा प्रतीप है।" पुनः उदाहरन जथा- अलक पै अलि-धुंद, भाल पै परध चंद, भों पै धेनु, नेनन पै बारों कंज-दल में । नासा कीर, मुकर कपोलँन,' बिंब अपन, दारों" बारों दसनन, 'ठोड़ी अंब-फल में ।। कंबु कंठ, भुजैन मुनाल, 'दास'कुच कोक, त्रिबली-वरंग बारों भोर नामिाथल में। अचल नितंबन पै जघन कदलि - खंब, पान'"-पग-वल बारों लाल मखमल में. पा०-१. (सं० प्र०) जो...। २. (भा० जी०) बरन। (वे ०) वर्ण... (सं० प्र०), वर्त्य । ३. (भा० जो०) (३०) (प्र० मु०) प्रतीप लेखि । ४. (प्र०-३) (भा. जो०) दुज...। ५. (मा० जी०) भास...। (0) आसन...! (प्र० मु०) भाशय...। ६. (३०) तिय... ७.(३०) कहै....। . ( नि०) (र० कु०) (३०) अ...। (म० म०) भू...18.(३०) करि...। १०.(३०) (र० कु०) ( नि०) (म० म०) (न० सि०) कपोल-बिंब अधरैन । ११. (३०)(म० म०) दारों.... १२ ( नि०) दसैनि...। १३. (न० सि०) भुज...! १४.(प्र. मु०) नाभी...। १५. (म० म०-द्वि० क०) लाल मखमल बारों बाल-पकातल में। ०नि० (दा०) पृ० २१, ६० । म०म० (०) १०५, १३ । न० सि० ० (प० ६०) १० १५, १।