पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/२१६

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काव्य-निर्णय . १८१ साधारन दृष्टांत की माला जथा- अरबिंद प्रफुल्लित देखि के भौर, अचानक जाह भरें पै अरें। बन-माल-थली लखि के मृग-साबक, दौरि बिहारि' करें पै करें। सरसी-ढिंग पाइकें ब्याकुल मीन, हुलास सों कूदि परें पै परें। अबलोकि गुपाल को 'दास जू' ए, अखियाँ तजि-नाज ढरें पै ढरें। वि०-"दास जी प्रस्तुत इस सुंदर उदाहरण के चतुर्थ चरण में उपमेय वाक्य निहित है, पूर्व के तीनों चरणों में उपमानों का कथन है और उपमेय-उप- मान वाक्यों का विव-प्रतिविंव भाव भी है। काव्य-प्रमाकर रचयिता भानु ने दास जी के इस छंद को परकीया नायिकांत- गत-'ऊढा नायिका' के और रसकुसुमाकर के संग्रहकर्ता ने बालंबन विभाव के अंतर्गत संकलित किया है। अतएव दाम बो से पूर्व इस भाव पर रस की खान 'रस खॉन' कहते हैं- 'प्रति लोक की लाज-समूह में घेरि के, राखि थकी भव-संकट सों। पल में कुल-कॉनि की मेंह नखी, नहिं रोक सकी पल के पट सों॥ 'रसखाँन' सों केतौ उचाटि रही, उचटी न सँकोच की भौचट सों। भलि कोटि कियौ हटकी न रही, भटकी अँखियों लटकी लट सों ॥' और श्री हरिराय जी कहते हैं- "सुन राधे नवनागरी हो, हम न करें विसबास । पून ससि कर-पाइके, चकोर न धीर धरात ॥" वैधरम दृष्टांत उदाहरन जथा- जोबन लाभ हमें, लखै स्याँम-तिहारी काँति । बिनों स्याँम-घन-छन प्रभा, प्रभा लहे किहि भाँति ॥ वि० - “यहाँ पूर्वार्ध में उपमेय वाक्य श्यामसुदर की कांति और उत्तरार्ध के उपमान वाक्य में उसकी प्राप्ति का अभाव "विना-स्पाम-चॅन" कहा गया है। इसलिये वैधर्म्य से विब-प्रतिबिंब भाव लक्षित है।" पा०-१. (का० प्र०) (का० का०) निहार । २. (का० प्र०) (का० का०) पार के...। ३. (सं० प्र०) विलास.... (का० का०) बिलास ते स्व...। ४. (प्र०-३) लखें...।

  • , का०प्र० (भानु । पृ० १७३ । का० का० (१० सि०) ५० ४३ । २० कु० (०)

पृ० ४, २१४ ।