पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/२२६

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काव्य निर्णय उधी सों को 'रसखाँन' कहै, जिन चित्त धरौ तुम एते उपाइ के। कारे-बिसारे को चाहें उतारयौ, अरे विष बाबरे राख लगाइकें । सत्य है...... "वदे-दिल का मजा वो क्या जाने । जिसका दिल उन-भर दुखा ही नहीं ॥" पदारथ की एकता ते जथा- इन चौरॉन' मँन-भीमती, ठहराए स बिबेक । सूर, ससी, कंटक, कुसुम, गरल, गंधबह एक ॥ पुनः उदाहरन जथा- व्याल, मराल सुडाल कराकृति, सु माँमते जू की भुजॉन में देख्यौ। पारसी, सारसी, सूर, ससी-दुति, भाँनन ऑनद-खाँन में देख्यौ । पै मृग, मीन, ममोलंन की छबि, 'दास' उन्हीं अँखियाँन में देख्यौ। जो रस ऊख, मयूख, पियूख में, सो हरि की बतियाँन में देख्यौ ।। वि०-"भारती-भूषण के कर्ता 'केडिया'जी ने इस छंद में 'द्वितीय-निदर्शना' मानकर कहा है-'जिसमें उपमेय के गुण का उपमान में अथवा उपमान के गुण का उपमेय में अभेद रूप से श्रारोप किया जाय वहाँ उक्त अलंकार होता है।" अतः इस द्वितीय 'निदर्शना' को 'पदार्थ-वृत्ति निदर्शना' भी कहते हैं और इसके उपमेय के गुण का उपमान में श्रारोप तथा उपमान के गुण का उपमेय में अारोप रूप से दो प्रकार के कहे जाते हैं। अतएव यह छंद द्वितीय उपमान के गुण का उपमेय में अारोप रूप प्रथम चरण में-व्याल, मृनाल और सुड श्रादि उपमानों का प्राकृति वाला गुण भुज उपमेय में, दर्पण, सूर्य, शशि उपमानों की छु ति का अारोप प्रिय-मुख के उपमेय में मृग, मीन और खंजन उपमानों का नायक की आँख उपमेय में तथा रस रूप ऊख, मयूख एवं पियूष उपमानों का आरोप हरि रूप नायक की बातों में स्थापित किया गया है । इसलिये यह उक्ति निदर्शना की 'माला' है।" पा०-१.( भा० जी०)(३०)(प्र. मु.) दिवसन मन भावती, ठहरायो ...। २. (प्र० मु०) सुकुम" | ३. (प्र. मु.) मृनाल कीकर आकृति... 1 (३०) बाल मृनाल सुदाल कराकृति... | ४.(सं० प्र०) मूलानि ।

  • भा० भू० (के.)पृ० १७७ ।