पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/२३९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

काव्य-निर्णय वि०-'दासजी के इस उदाहरण पर भी निम्न-लिखित अालम कवि की यह रचना भी बड़ी सुंदर है, यथा- "रजनी-मधि पारी गोंन कियो, निरखी पिय-अखियाँ रंग-भरी। कवि 'मालम' रंभन को ललक्यौ, रति-लालच है हिय लाइ हरी ॥ खरी खींन हरे-रॅग की अंगिया, दर की प्रघटी कुच-कोर-सिरी। उरमे जुग जार-सिवान में, चकवान की चोंच मनों निकरी ॥" अथवा- "सबज कंचुकी के विष, यों कुच-छबि ठहरात । मानों पुरइँन-पात-छिपि, चक्रवाक दरसात ।।" पुनः उदाहरन सवैया जथा-- स्याँम सुभाइ में, नेह-निकाइ में, आप-हूँ है गए' राधिका-जैसी। राधे करै अब राधे जु माधौ, प्रेम'-प्रतीति भई तँनमें-सी ।। ध्याँन-हो-ध्यान में ऐसौ कहा भयौ, कोऊ कुतर्क करै य ऐसोश जॉनत हों इन्हें 'दास' मिल्यौ कहूँ मंत्र महा पर पिंड-प्रबेसी ।। . ___ अस्य तिलक परपिंड ( दूसरे को काया में ) प्रबेसी-मंत्र ( प्रवेश करने वाला मंत्र ) को मिली अचरज नाहीं, ताते यहाँ हूँ 'उक्तविषया उत्प्रच्छा है। वि०-"दासजी कृत इस तृतीय उदाहरण स्वरूप -, 'स्याम-सुभाइ में.... के साथ किसी कवि का यह सवैया भी बड़ा सुंदर है, यथा- "मापनी ओर की चाह लिख्यो, लिखिजाति कथा उत मोहन-मोर की। प्यारी, दया-करि भाँनि मिलौ, सहिजाति बिथा नहिं मेंन-मरोर की। मापु-हीनाँचि लगावति भंग, महो किन भाँनी चिठी चित-चोर की। राधिके, राधे रही जकि भोर तें, है गई मूरति नंद-किसोर की ।। साथ-ही, दासजी ने इस छंद का प्रयोग-अपने 'शृगार-निर्णय' में "स्मृति- दशा" के उदाहरण में किया है । स्मृति-दशा- पा०-१. ( स० प्र०) गयो । २. ( का०) (३०) (प्र०) अब राधौ... । (T० नि०) अब राधे । ३. (का० ) (३०) (प्र.) मैं रीति" । (१० नि० ) प्रेम-प्रतीत भई तन-जैसी । ४. (सं० प्र०) सों... । ५. ( नि०) अब... । ६. (का.) (३०)(प्र. ) कैसी । ७. (सं० प्र०) है ।

  • नि० (दास) पृ० १०३,३११ ।