पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/२४०

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काव्य-निर्णय २०५ "जहाँ इकार-चित करि धरै, मन भावन को ध्यान। इसमृति-दसा तिहिं कहत हैं, लखि-लखि बुद्धि-निधान ॥" स्मृति-दशा प्रवास-विरह के अंतर्गत-दस दशाओं में एक प्रधान दशा है। ये दस 'दशा' इस प्रकार है- आलस, चिंता, गुन, कथन, स्मृति, उदबेग, प्रलाप । उनमाद-हि, ब्याधि-हि गनों, जढ़ता, मरन, संताप ॥ - नि० पृ० १०२, १०१ अस्तु, इन दस दिशाओं में 'मरन' दशा का वर्णन-कथन, साहित्यकारों ने नहीं किया है, कारण स्पष्ट है । स्मृति का उदाहरण "पालम" कवि कथित बड़ा. सुंदर है, ब्रज-साहित्य में इसकी जोड़ नहीं है, यथा- "जा य ज कीने बिहार अनेकन, ता थल कॉकरी बैठि चुन्यों करें। जा रसना सों करी बहु बात, सु ता रसना सों चरित्र गुन्यों करें। 'पालम' जोंन से कुजन में करी केलि तहां अब सीस धुन्यों करें। ननन में जे सदाँ बसते, तिनको अब कॉन कहाँनी सुन्यों कर ॥" अथ अनुक्त-विषया बस्तुत्प्रेच्छा-उदाहरन सवैया जथा- चंचल लोचन चार बिराजत, पास लुरी अलके थैहर। नाँक मनोहर औ नथ' मोतिन की कछु बात कही न पर।। 'दास' प्रभाँन-भरयौ तिय-मॉनन, देखति हो मन जाइ पर। खंजन, स्याँप, सुवा-सँग तारे, मनों ससि-वीचि बिहार करें। अस्य तिलक "खंजन, स्पॉप (सर्प) सूवा (तोता) अरु तारागन इन सब को चंद्रमा के बीच (एक सग) बिहार करिबौ अनुक्त (भयुक्त) है। ऐसौ नाहीं है सके है, ताते यहाँ "अनुक्तविषया बस्तुस्प्रेक्षा है।" वि.-"जहाँ उत्प्रेक्षा का विषय न कहकर उसकी संभावना का वर्णन किया जाय, तब वहाँ "अनुक्त, विषया वस्तुत्प्रेक्षा" बनती है, अर्थात् जहाँ विषय (उपमेय) का वर्णन हो वहाँ “उक्त विषया" और वहाँ विषय (उपमेय) का वर्णन पा०-१. (का०) (३०) (प्र०) नक...।

  • ० म० (पो०) पृ० १४०, २२२ ।