पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/२४५

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काव्य-निर्णय अस्य-तिलक इहाँ भान (सूर्य) को जाड़े (सदी) सों डरपियो प्रसिद्ध रूप है। वि०-“दासजी के इस 'असिद्ध-विषया-हेतूत्प्रेक्षा' के उदाहरण के साथ किसी कवि की यह सूक्ति भी बड़ी सुमधुर है, यथा- ___का अचरज हेंमत में जो दिन छोटे होइ । सरदी के ससरग ते, सिकुरति हैं सब कोइ ॥" यहाँ सर्दी के डर-से-कारण से, दिनों का छोटा होना, ऊपरवाली उत्प्रेक्षा को प्रकट करता है।" पुनः उदाहरन जथा- बिरहिन के अँसुवान ते, भरैन लग्यौ संसार । मैं जॉन्यों मरजाद-तजि, उमग्यौ सागर-खार ॥ अस्य तिलक इहाँ हूँ सागर को उमगियौ प्रसिद्ध हेतु है। वि०-"दासजी के इस कथन के साथ-साथ किसी उर्दू शायर का निम्न- लिखित शेर भी काबले-दीद है, यथा- "समंदर कर दिया नाम उसका नाहक सबने कह-कहकर । हुए थे कुछ जमाँ भाँस , मेरी आँखों से बह-बहकर ॥" अथ सिद्ध-विषया फलोत्प्रच्छा उदाहरन जथा- बाल, अधिक छबि-लागि निज नेनन अंजन देति । में जाँन्यों' मो हनन कों, बॉनन'-विष भरि लेति ॥ अस्य तिलक इहाँ बाँनन में बिष-भरि के मारियो फल-सिद्ध है। वि०-"अफन में फल की संभावना मानने को फलोरक्षा कहते हैं। यह भी पूर्व की भाँति "सिद्धा" और "असिद्धा"-स्पद होती है । अतएव जहाँ उत्प्रेक्षा का विषय प्रास्पद-श्राश्रय रूप विषय संभव हो वहाँ 'सिद्ध-विषया' और जहाँ उत्प्रेक्षा का आश्रय रूप विषय असिद्ध हो- असंभव हो, वहाँ “असिद्ध- विषया फलोअक्षा" कही-सुनी जाती है। दासजी के इस उदाहरण के साथ भारतेंदुजी का निम्न-लिखित दोहा भी देखें, यथा- पा०-१.(सं०:०) जनिति । २. ( सं० प्र०) नेनन...!