पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/२४९

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२१४ काव्य-निर्णय 'दासजी' से पूर्व ऐसा ही लक्षण और उदाहरण मतिगम, जी (ललित-ललाम) तथा पद्माकर जी (पद्मामरण) ने भी दिये हैं, यथा-- "उत्पच्छा-वाचक जहाँ, सबद कहयौनहि-होह। 'गुप्तोत्पन्छा' कहत हैं, तहाँ सुकबि सब कोई ॥" -ललित-ललामः उत्प्रच्छा-योतक जु पद, जहाँ कयौ नहिं होइ । भरथ-करति में ल्याइए, 'गम्योत्प्रच्छा' सोइ ॥" -पमाभरण पुनः उदाहरन जथा- बालँम कलिका-पत्र औ खौर सजे' सब गात । लाल, जोहिबे जोग ए, चित्रित चंपक-पात ॥ अस्य तिलक इहाँ मनों (आदि उत्प्रेक्षा-बाचक ) सबद लुस हैं, ताते लुप्तोतमेच्छा है। अथ उत्प्रेच्छा की माला चौखंडे उतरि बड़े हो भोर बाल आई, देब-सरि आई' मनों देवी कोऊ ब्योम ते । सोभा सों सफरि' खरी तट सोहै भीजे पट, बलित बरफ६ सों कँनक - बेलि मोम ते ॥ धोए ते दिठोंनाँदिक ऑनन अमल भयौ, कढ़ि गयौ माँनों सो कलंक पूरे सोम ते । अलकन जल-कॅन छाए' धाए अध आबे, चली बाबै पाँति तारन को माँनों तैम-तोम ते ॥ वि०-"दासजी ने उत्पक्षा के विविध भेदों व उदाहरणों को प्रस्तुत करते हुए उमकी 'माला' पर "उत्प्रेक्षालंकार" की इति श्री कर दी है । संस्कृत के अलंकार-अाचार्यों ने प्रतीयमाना फलोत्प्रेक्षा के पूर्व कथित भेदों के साथ उत्प्रक्षा पा०-१. (सं० प्र०) (का० ) (प्र. ) सजै...। २. ( सं० प्र०) (वे. ) (६०) बाल चाहिए. जोग यह । ३. (का० ) (३०)(प्र०) चौखडे ते...| ४. ( सं० प्र०) मानों आई ! ५. (50) सपरि...। ६. ( सं० प्र०) सरफ...। ७. ( का० ) ( 0 ) (प्र.) मानहुँ कलंक...। २. (सं० प्र०) अलकॅन जल-कन छायो मनों आबै चली, हरख नली ताए तैम-तोम ते । ( का० , अलकन जलकन धावै मनों आबै चली, पति पै हरख-रली तारा तम तोम ते। (३०)..धायौ मनों आबै चली पति ये हरख-रली तारा...। ६. (प्र०) धाए अध आवे चले।