पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/२६३

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२२८ काव्य-निर्णय वा भाव, क्योंकि भाव सदा हृदय में रहता है और कोई अवसर-विशेष पाकर ही प्रकट होता है तथा अलंकार-रूप में उसकी इससे कुछ विशेष विशेषता की श्राव- श्यकता रहती है। यों तो विदेश-गये प्रियतम अथवा मित्र की स्मृति सदा-ही हृदय में बनी रहती है। उसके चित्रादि के अतिरिक्त अन्य संबंधित वस्तुएं देख- देख कर भी स्मरण रूप विविध भाव उठते-बैठते रहते हैं, किंतु जब उक्त भावों के विकसित होने का वर्णन उक्ति-वैचित्र्य के द्वारा सदृश वस्तु के अनुभव से अथवा अन्य प्रकार से किया जाय तब वे अलंकार कहे जायगे, जैसा कि दासजी के इस अलंकार के उदाहरणों अथवा कविवर की विहारीलाल के निम्नलिखित दोहे में "सन कुज, छायाँ सुखद, सीतल-मंद-सॅमीर । मन है जाति भनों वहै, वा जमुनों के तीर ॥ है । यहाँ गोपियों ने भगवान् व नायक कृष्ण के साथ जो-जो लीलाएँ की है, उनकी स्मृति तो उन्हें बनी-ही है, पर वह हृदयस्थ स्मृति कमी-कभी उन लीलाश्री के स्थानों-"यमुना-तीर की सीतल-मंद-समीर-संयुक्त सघन कुजों की सुखद छाया देख-उनका अनुभव कर, ( उनका ) मन एकाएक उदबुद्ध हो उठता है'–उन लीलानों के आनंद का स्मरण कर मग्न हो जाता है। अतएव यहाँ सुमरन, भाव न बन कर अलंकार हो गया है।" भ्रम-"अप्रकृत (उपमान) के समान प्रकृत (उपमेय) के देखे जाने पर, अप्रकृत उपमान की भाँति होने पर, एक वस्तु को भ्रम के कारण दूसरी वस्तु समझ लेने पर, अथवा किसी वस्तु में उसके सदृश अन्य वस्तु का कवि-प्रतिभा- द्वारा उत्थापित चमत्कार 'भ्रम', 'भ्रांति' वा भ्रांतिमान् अलंकार कहा जाता है, क्योंकि यहाँ सादृश्य के कारण वर्य-वस्तु में अवर्ण्य-वस्तु की भ्रांति वाक्-वैचित्र्य के साथ होती है। भ्रम-अलंकार में दो बातें श्रावश्यक हैं, प्रथम यह कि भ्रम का कारण कुछ साम्यता लिये हुए होना चाहिये और दूसरे इसके वर्णन में कवि-प्रतिमायुक्त कुछ वैचित्र्य भी। इसलिये जब उपमेय में अति साम्यता के कारण उपमान का निश्चित भ्रम हो जाय, तब यह अलंकार होता है। जब तक एक-ही वस्त का भ्रम वर्णन किया जाय तब तक ही यह अलंकार कहा जायगा, कई भ्रमों वा भ्रांतियों के वर्णन किये जाने पर वह 'उल्लेषालंकार' का विषय बन जायगा । जैसे रूपक में उपमान का उपमेय पर भार होता है वैसा-ही इस भ्रमालंकार में भी होता है, पर प्रथम (रूपक) में दोनों (उपमानोपमेय) को विभिन्न वस्तु जानते हुर भी सादृश्य के कारण एक माना जाता है, भ्रम में दोनों को भिन्नता न रहते हुए भी प्रत्युतः उपमेय में उपमान की भ्रांति. मान ली जाती है। यहाँ यह याद रहे कि वह भ्रम