पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/२६६

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६६६ अलंकाराचार्यों ने 'सुमरन' को ध्वनि मानते हुए उदाहरण में 'हनुमन्नाटक' का यह श्लोक दिया है, यथा- "सौमित्रे ननु सेव्यतां तरुतलं चंडाशुरूज्जभते, चंडांशोनिशि का कथा रघुपते चंद्रोऽयमुन्मीचति । पसंतद्विदित कथं नु भवता धत्ते कुरंग यतः, . वासि प्रेयसि हा कुरंगनयने चंद्रानने जानकि।" यह श्री गम-लक्ष्मण की उक्ति-प्रत्युक्ति है । श्रीराम ने कहा-- लक्ष्मण वृक्ष के नीचे चलो, क्योंकि सूर्य उदय हो रहा है। लक्ष्मण ने कहा रघुपते, रात के समय सूर्य की क्या बात, यह तो चंद्रोदय हो रहा है...। श्री राम ने कहा-वत्स, तुमने यह कैसे समझ लिया कि यह चंद्र है ? लक्ष्मण ने कहा-क्योंकि वह मृग को धारण कर रहा है । यह सुनते ही श्राराम ने कहा-हाय, मृग-नयनी चंद्र मुखी प्रियतमे जानकी, तुम कहाँ हो ? श्लोक प्रयुक्त स्मरणालंकार की यह कितनी सुदर ध्वनि है, धन्य है, धन्य है सूक्ति और रचनाकार को और उसके समझने वालों को...। लक्ष्मण-मुख से यह सुन कर कि 'यह तो मृगलांछन संयुक्त चंद्र है, वियोगी श्रीराम को मृगके समान नेत्रों वाली और चद्र के समान मुखवाली श्री सीता का "स्मरण" होना शब्दों- द्वारा कथन न होते हुए भी कितने सुदर रूप से ध्वनित है, यह साहित्य-मर्मज्ञ ही जान सकते हैं, क्योंकि यह स्मृति व्यंग्य है और अलंकार्य है।" अथ श्रृंमालंकार उदाहरन जथा- ओढ़े सारी' जरद लखि', कंचन बरनी-बाल । चतुर चिरी चित कँद गयौ, में भूलि रंग जाल' ॥ अस्य तिलक इहाँ भ्राँति (भ्रम) के संग रूपक संकलित है। पुनः उदाहरन जथा- बिर" बिचारि प्रवसन लग्यों, करीमुंड में ज्याल । ता हूँ करी जु अल-म, लियो छाइ उताल । पा०-१. (का०) (३०) (प्र०) जाली । २. (१०) की । १. (३०) (०) ग । ४. (प्र०) #मों भूलि रंग जाल | ५. (३०) मिन । (प्र०) (कॉ) बिल... ६.( (०)गोल ७. (का०) (१०) (प्र०) कारी असा...।