पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/२७४

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का निर्णय (२१९ __अथ पोखन-दोन दुहूँन को कथन जथा-- . . . लाल-लाल अनुमाँनि' के, उपमाँ दीजे और । "मृदुल अधर-सँम होंड क्यों, विद्रुम निपट कठोर ।। पुनः उदाहरन जथा- सखि, वामें जगै छन-जोति-छटा, इत पीत-पटा दिन-रेन मड़ौ। वो नीर कहू बरसे, सरसै, यह तो रस-जाल सदाँ-हों भदौ । वौ सेत हे जात' अपानिप है, ये रंग अलौकिक रूप-गड़ी। कहि 'दास' बराबरी कोंन करे, घन-सों घनस्याँम-सों बीच बड़ौ। वि०-'इन दोनों-"लाल-लाल अँनुमानि के" और "सखि, वामें जगै ॐन-जोति छटा" ...छंदों-उदाहरणों में उपमान से उपमेय में अधिक गुण कहा गया है।" अथ केवल पोखन को कथन जथा- प्रघट' तीनहूँ लोक में, अचल प्रभा करि थाप । जोत्यौ 'दास' दिबाकर, श्री रघुबीर-प्रताप ।। पुनः उदाहरन जथा-- सरस, सुबास, प्रसन्न प्रति, निसि-बासर सानंद । ऐसे मुख को कमल-सौ५, क्यों' भाँखत मति-मंद ॥ वि०-"इन दोनों दोहों में भी केवल उपमेय का गुण वर्णन 'दासजी ने किया है।" पुनः दूसन-ही कौ उदाहरन जथा- घटै-बदै सकलंक लखि, जग सब कहैं ससंक । बाल-बर्दैन-सम है नहीं, रंक, मयंक, इकंक । पुनः दूजी उदाहरन जथा - बारित देखता हों नित-ही, जग में तजि के जल देति न ऑन है। पारसको अनुमाँनति • हों, पैहचानति हो सो निदान पखाँन है । _ro-१. (का०) (प्र०) उनमानि...। २. (का०) (३०) (प्र०) जाते...। ३ (का०) (प्र)का.... ४.(३०) 'प्रबल'...1५. (३०) (प्र०) सों...। ६. (का०) को...। ७. (नी० सु०) साल जग कहै...। प. (का० ) (३०) (रा० पु० प्र०) (रा० पु० का० ) लेखन-हों 'परि देखत हों तजि के...। ६.(३०) कोऊ न मानति हो...। १०. ( का० ) उनमानत...। ११.( का० (३०) (प्र०) तो....