पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/२८०

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२४५ काव्य-निर्णय तदरूप-रूपक-समोक्ति को उदाहरन जथा- दृग कैरब के दुख हरन, सीत-करन मॅन-देस । ये बनिता भुबलोक की, चँद-कला सुम-बेस । वि० -"जहाँ दोनों उपमान सम ( बराबर ) हों वहाँ “तद्र रूपक समोक्ति ( सम-तद्र रूपक ) कहा जाता है, क्योंकि 'तद्रूप' का अर्थ है- उसका रूप । अस्तु, जब उपमान की अपेक्षा उपमेय में कुछ विशेषता दिखलाई जाय तब वहाँ 'अधिक' और यदि कुछ कमी दिखलाई जाय तब 'न्यून' तथा जब दोनों समान बतलाये जायँ तब 'सम-तद्प-रूपक' कहा जाता है।" पुनः उदाहरन जथा- कमल-प्रभा नहिं हरत हैं, हगन देति आँनंद' । कै न सुधाधर तिय-बन, क्यों गरबत वो चंद ॥ अस्य तिलक यहाँ, प्रतीप ( जब प्रसिद्ध उपमेय को उलट कर उपमान बना दिया जाय ) कौ ( अंग) ब्यगि है।' अथ अभेद रूपक अधिकोक्ति उदाहरन जथा- है, रति कों सुख-दायक मोहन,' यों मकराकृत-कुंडल-साजै । चित्रित फूलॅन को धनु-बाँन, तन्यों गँन भोर की पाँति को भ्राजै ।। सुभ्र सरूपन में गँनों एक, बिबेक हँन तिय - सेन - सँमाजै। 'दास' जू बाज बने ब्रज में, ब्रजराज सदेह-अदेह बिराजै ।। वि०-'जहाँ उपमेयोपमान ऐसे-इस प्रकार अभिन्न हों कि किसी विशे- षता के कारण-हीं वे ( उममेय उपमान से ) प्रथक् जान पड़े, तब वहाँ "अभेद रूपक अधिक," अथवा "अधिक अभेद रूपक" कहा जाता है, जैसा इस उदाहरण में । यहाँ 'ब्रजराज' और 'काम' में अभेद रूपक है ।" पुनः उदाहरन जथा- बंधुन -डर' नृप कौ' करै, सागर कहा बिचारि । इन को पार न सत्रु है, और श्री-संग-निहारि ।। पा०-१. (का०) को . । (३०) की। २. (स० प्र०) (३०) हनतु के...। ३. (३०) दृर्गान न देति अनंद । ४ (३०) कहु...। ५. ( का० ) (३०)(प्र०) को...। ( स० पु० प्र०) की...। ६ (सं० पु० प्र०)...मोह भयो मकरा० ..। ७. ( सं० पु० प्र०) ( का० ) (३० । भ्रांति...। २. ( स० पु० प्र०) बाँधन...। ६. ( का०) दुर ..। १०. (३०) (प्र०) सों...। ११. (३०)(प्र०) अरु हरि गई न नारि...।