पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/३१२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२७७
काव्य-निर्णय

निर्णय २७७ अस्तु, चपलातिशयोक्ति का कवि 'गंग' प्रणीत उदाहरण अति सुंदर है, बनभाषा के छंदों में अग्रगण्य है, यथा- "बैठी-ही सखिन-संग पिय को गमन सुन्यों, सुख के समूह में बियोग-भागि भरकी। 'गंग' कहै त्रिविध सुगध ले बह्यौ सॅमीर, लागत-ही ताके तन भई बिथा जरकी ॥ प्यारी कों परसि पोन गयौ मॉन-सर पै जु लागत-ही भोरें गति भई मानसर की। जलचर जरे औ सिबार जरि छारि भई, जल-जरि गयौ, पंक-सूख्यो, भमि दरकी ॥" और प्रवस्यत्त्प्रेसी के दो उदाहरण, यथा- "बाल सों लाल बिदेस के हेत, हरें हाँसिकं बतियाँ कछु कीनी । सो सुनि बाल गिरी मुरझाइ, धरी हरि धाइ गरे गहि लींनी ॥ मोहन-प्रेम-पयोध भयो, जुरि दीठि दुहूँ की गई रस-भीनी । माँगै बिदा को, बिदा को करे, मिलि दोऊ बिदा कों बिदा करि दीनी ॥ मिस-ही-मिस जॉन की बात कही, सो सुनें न विथा सहिजाति भई । उर-लादिली के बिरहागि-जरी, सुधि श्री बुधि-हू दहि जाति भई ॥ ठगि-से रहे 'सेवक' स्याँम लखें, रसनाँ-गति की गहि जाति भई । इमि नेन ते नोखी नदी प्रघटी, बलिहारी, बिदा बहि जाति भई ॥ "उलझन थी, इन्तराब था, काहिश थी, दर्द था। जाना तुम्हारा रात कयामत हुभा मुझे ॥" पुनः उदाहरन जथा- तेरे जोग कॉम य, रॉम के सँनेही, जाँमबंत कयौ, औध हू के चौस दस' कै रह्यो । एती बात सुनत अधिक हनुमंत गिरि- सुदर तें कूदि के सुबेल पर है रह्यो । पा०-१. (३०) दसा... । २. (का० ) एती बात अधिक सुने ते...। (३०) प्र०) एती बात अधिक सुनत...।