पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/३२१

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काव्य-निर्णय

काव्य-निर्णय अस्य उदाहरन जथा- तेरे-ही नोंके लसें मृग-नेन', औ' तो-ही कों नींक" सुधाधर माँनें। तो-ही ते होत निसा हरिकों, वे तोहिऐ कलानिधि कॉम की जाँन । तेरे अनॅपम-ऑनन की, पदबी सब° वाहि को देति भयॉन । तू ही है बॉम गुबिंद को रोचक'२, चंदै तौ मति-मंद बखाँनें ।।. अस्य तिलक ____ पर्जस्यापह ति हेतु' प्रघट करत है, इहाँ नाहीं। वि०-"दासजी का यह उदाहरण “मानिनी नायिका" के प्रति सखी की उक्ति है। मानिनी-अपने प्रिय को अन्य नायिका की ओर आकर्पित जान ईर्ष्या से मान करने वाली को कहते हैं । इसे साहित्य-रसिक "मानवती" भी कहते हैं, यथा- "खि नाइक-भौगुन, करत, जो इरखा-करि माँन । 'मानवती' ता को कहत, जे कबि बुद्धि-निधान ॥" -सिक-विनोद अस्तु, मान तीन प्रकार से प्रकाशित किया जा सकता है, यथा- "तीन-भाँति पिय सों करति, माँन-कोप परकास । मुख-परि, के पीछे, किधों चुप है है उदास ॥" -सलीन मानिनी नायिका नहीं, अपितु उस (नायिका) के मान की शोभा पर अष्ट- छाप को छाप से अलंकृत श्रीनंददास जी का एक पद निरखिये । श्रोह.....कितना सुदर है, कि कुछ कहा नहीं जाता, यथा- "पहले तो देखौ भाइ मानिनी की सोभा लाल, ___ पाछे ते मनाइ लीजो प्यारे-हो गुबिंदा । कर पर धर कर कपोल, प्यारी रही नैन-मूदि, कमल-बिछाइ मौनों सोयौ सुख चंदा ॥ पा०-१. ( का० ) (प्र.) तेरौई...1 २. (३०) (र० सा० ) लख्यो...। ३. (का०) (वे. ) (प्र०) नैनन...! ४. ( का० ) (३०) (प्र. ) तोही को... ( रा. पु० नी० सी०) जु तोही को...। ५. (प्र०) सत्र । (र० सा० ) सत्य...। ६. ( का० ) (३०) (प्र. ) सों... ७. (र० सा० ) की...। २. (का० ) (३०) (प्र०) हम...18.(का०) (प्र०) तेरी...| १०. (का०)(३०) (प्र०)(र० सा०) वोहि को सब देति...। ११. (३०) (र० सा०) सयाने । १२. (का०) (१०) (र० सा०) लोचन । (रा० पु. नी० सी०) रोचन ।

  • २० सा० (मि० दा०) पृ० १५ ।