पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/३५०

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काव्य-निर्णक कोंन जाँनें कौन-धों सुकृतन' भलाई-बस, भाँमिनि भई तू मॅन-भाई ब्रजराज की॥' अथ स्तुति-ब्याज निंदा को उदाहरन जथा- - गोरस को बेचिबौ-बिहाइ के गँवारिन - अहीरनी, तिहारे प्रेम-पालिबे को क्यों अरै। एते पै चाहिऐ जौ राबरे के कोमल-हिए, कोंन नित बापने कठोर कुच सों दरै॥ 'दास' प्रभु कीनी भली दींनी यों सजाइ अब, . नींके निस-बासर बियोगानल में जरै। ए जू ब्रजराज, सब राजन के महाराज, तुम्ह-बिन आज ऐसी राजनीति को करें । अथ स्तुति-व्याज स्तुति को उदाहरन जथा- दास नंद के दास की, सरि न करै पुरहूत । बिद्यमान गिरिवरधरन, जाको पूत-सपूत ॥ अमल-कमल की है प्रभा, बाल बदन को डोर । ता को नित चुंबन कर, धन्य भाग तुब भौर ॥ अस्य तिलक इहाँ प्रथम (दोहा) में दोऊ प्रस्तुत हैं, ताते प्रस्तुतांकुर में मिलत है, दूजे में बदन प्रस्तुत है सो अप्रस्तुत-प्रसंसा में मिलत है। ___ अथ निंदा-ब्याज निंदा को उदाहरन जथा- नहिँ तेरौ, 4 विधि-हु को, दूखन काग कराल । जिन तो कों, कलरबौ कों, दीनों बास रसाल॥ दई निरदई सों भई, 'दास' बढ़ी भूल । कमल-मुखी कौ जिन कियौ, हियौ कठिनई-मूल ।। - पा०-१.( का०)(३०) (प्र०) सुकृत की भलाई...। २. (का० ) (प्र.) भामिनी...। ३. (का०) (३०)..हिए कों वह आपने...। ४. (का०) (३०) हो ज... (प्र. ) एहो अज...। ५. ( का०) (३०)(प्र०) राजनीति और को...। ६.

(का०) (प्र०) की...। (३०) के... ७.(का० ) (३०) (प्र०) यह... क.

(का० j(प्र.) तो कह.... (३०) तो हू...1६. (३०) है..!