पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/३६४

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३२३ कार-निर्णय अथ षष्ठ विरुद्ध गुन सों क्रिया को उदाहरन जथा- दच्छिन पोन त्रिसूल भयौ, त्रिगुनों नहिं जाँने कि सूल है कसौ। सीरौ मलै' जगती में बहै, दुख देंन को भौ अहि-संगी अनसौ॥ बारिज हू विष-रीति लई, अब 'दास' भयौ है" जु औसर ऐसौ । जाहि पियूष-मयूष कहैं, वौ• काँम करै रजनीचर जैसौः ।। अथ सप्तम बिरुद्ध गुन सों द्रव्य को उदाहरन जथा- 'दास', छाँदि दासीपनों, कियौ न दूजो तंत । भाबी-बस तिहि कूबरी, लहयौ कंत जग-बंद ।। अय अष्टम बिरुद्ध क्रिया सों द्रब्य को उदाहरन जथा-- केस, मेद, कच, हाड़ सों'• बवै त्रिबेनी-खेत । 'दास' कहा कौतुक कहों, सुफल च्यारि लुनि लेत ॥ अथ नवम विरुद्ध द्रव्य सों द्रव्य को उदाहरन जथा- ज्यौ पट लहयो"बघंबरो, सज्यौ चंद नख२ भाल । डोंरु-च्याल त्यों संग्रहौ, तजि मुरली-बनमाल ॥ अथ बिरुद्धालंकार-संसृष्टि उदाहरन जथा- नेह-लगाबत रूखी परी तन, ३ देखि गही अति उन्नतताई। प्रीति बढाबत बैर-बढ़ायौ, तू कोमल ४गात गही कठिनाई॥ जे ती करो अनौवती तू, मन-भाँवती तेती सजाइ कों पाई। भाकसी भोंन, भयौ ससि सूर, मलै विष ज्यों सर-सेज सुहाई॥ वि०-"काव्य-निर्णय' की सभी (हस्त-लिखित तथा मुद्रित) पुस्तकों में विरुद्धालंकार के कथित दस भेदों के उदाहरण-रूर दस छंद तो मिलते हैं, पर शीर्षक नहीं मिलते। एक को कमी खटकती रहती है। यहाँ विविध शीर्षकों पा०-१. ( का०).(३०) (प्र.) त्रिगुने.... २. (३०) (सं० पु० प्र०) मलैज गन्यो मैं बहू दुख...। ३. (३०) विपरीत...। ४. ( का०) (३०) (प्र०) लियो । ५. (का०) (प्र०) यह...। (३०) अब...। ६. (रा. पु० प्र०) (रा० पु. नी० सी०) कैसी...। ७. ( का० ) (प्र०) वह...। (३०) वहै .। (सं० पु० प्र०) ससि...। . (स० पु० प्र०) कैसौ। ६. (का०) (३०) (प्र.) छोडि...। (रा० पु. नी० सी०) बादि दास दासीपनों । १०. का०) (प्र०) जो ... (३०) सों...। . ११. (का०) (ब) लहयो । १२. (सं० पु० प्र०) खत...1(प्र) सज्यो चद्रवत भाल । १३ (३) नत.... १४. (का०) (०) कोमली.... १५. (प्र०) बाँनि...। (रा० पु० प्र०) गत...। १६. (सं० पु०प्र०) निठुराई ।