पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/३७१

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कान्य निर्णय वि०-"जहां अहेतु ( जो किसी वस्तु का कारण नहीं, उस ) से कार्य प्रकट होता हो, वहाँ 'चौथी विभावना" कही जाती है। दासजी ने यहाँ पानिप (पानी) से श्राग का प्रकट होना-जो उसका कारण नहीं है, उससे श्राग का प्रकट होना कहा है। कन्हैयालाल पोद्दार ने यहां "पांचवी-विभावना ( विरुद्ध कारण से कार्य की उत्पत्ति ) मानते हुए कहा है-“यहाँ पानी से अग्नि-लगना विरुद्ध कारण से कार्य की उत्पत्ति है।" हमारी अल्प दृष्टि से यहाँ दोनों 'विभावना' बन सकती हैं, पर पांचवीं विभावना विशेष स्पष्ट है । यथा - "सॉमन-ऑमन हेरि सम्वी, मन - भाँमन - ओमन चोप बिसेखी। छाए कहूँ 'घन-आंनद' जॉन, सभार की गैर लै भूलँन लेखी ॥ बूदें लगें सब अग उदै, उलटी गति आपने पापन पेखी। पोंन सों जागत आगि सुनी-ही, पै पानी सों लागत अाज में देखी ॥" पुनः उदाहरन जथा- श्री' हिंदूपति, तेंग तुब, पाँनिप - भरी सदा-हिं। अचरज या की आगि सों, अरि-गँन जरि-जरि जाँ हिं।। अथ पाँचवीं बिभावना को उदाहरन “कारन ते कारज कछु" जथा-- सखि, चैत है फूलन को करता, करिबे सु अचेत अचेंन लग्यो। कहि 'दास' कहा कहिऐ कलरौ-हु जो बोलॅन वै' कल-बैन लग्यौ ।। जग-प्रॉन कहावत पोन को गोंन, सो प्रॉनन को दुख-देन लग्यो। ये कैसौ निसाकर मोहि-बिना पिय साँकरे' कै जिय लेन लग्यौ । पुनः उदाहरन जथा- 'दास' कहा कौतुक कहों, डारि गरे निज हार। जैतबार • संसार कों, जीति लेति यै दार ।। अथ छठी बिभावना को उदाहरन-“कारज ते कारन" जथा- चंद - निरखि सकुचत कमल, नहिं अचरज नँद - नंद। 4. अचरच तिय-मुख-कमल, निरखि जु सकुचत चंद ।। पा०-१. ( का०) जो...। २. का०) (३०) (प्र. ) ( स० पु० प्र०) भांच सो...। ३. ( का०) (३०) (प्र०) करने । ४. (प्र०) सो.... ५. (का०) हित बोलन...1 (३०)(प्र०)-हिजो (जु)।६.( का० ) जो...। ७.(स० पु० प्र०) (का०) (०) गोंन के पॉन-१, प्रानन.... प. (का०) विषाकर...! ६. (प्र.) सांकर...। १०.( का०) (३०) यह...। (प्र०) यह अदभुद तिय....