पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/३७९

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काव्य-निर्णय अभिप्राय से सकारण करता है, जिससे उसकी उक्ति में विशेष चमत्कार श्रा जाय। ___ब्रजभाषा के रीति-ग्रंथों में केशव से श्रादि लेकर पद्माकर और ग्वालजी तक सभी श्राचार्यों ने विशेषोक्ति का एक-ही भेद माना है।" अथ बिसेसोक्ति उदाहरन जथा- नाभि-सरोबर श्री त्रिबली की, तरंगँन पैरत' ही दिन-रात है। बूड़ि रहें तैन-पाँनिप-ही में, नहीं बनमाल-हू ते बिलगात है। 'दास जू प्यासी नई अँखियाँ. घनस्याँम-बिलोकत ही अकुलात है। पोबो करें अधरामृत कों: तऊ' इनकी सखि, प्यास न जात है ।।. वि०-"दासजी के इस उदाहरण में सेठ कन्हैयालाल पोद्दार (अलंकार- मंजरी में ) अनुक्त-निमित्ता विशेषोक्ति मानते हुए कहते हैं-"यहाँ प्यास मिटाने का कारण अधरामृत का पान किये जाने पर भी प्यास का न मिटना कहा गया है, उसका निमित्त' नहीं कहा गया है, इसलिये अनुक्कनिमित्ता विशेपोक्ति है।" ___एक बात और, वह यह कि विशेषोक्ति पूर्व-कथित विभावना से विपरीत कही जाती है, क्योंकि विभावना में कारण के बिना कार्य उत्पन्न होता है और विशे- षोक्ति में कारण के रहते हुए भी कार्य नहीं होता। विभावना में अवास्तविक या अप्रसिद्ध कारणों की कल्पना की जाती है, विशेषोक्ति में कारणों के रहते हुए भी कार्य न होने के विशेष कारण कल्पित किये जाते हैं इत्यादि ।" अथ असंगति अलंकार कथन जथा- जहँ कारन है और थल, कारज और ठाँम । अनत करन को चाहिए, करें अनत-ही काँम ।। और काज करिवे लगत', कर जु और काज | त्रि-बिध असंगति' कहते हैं, सुकबिन के सिरताज ।। पा०-१.(स० पु०प्र०)(का०) (३०) के...। २. (रा. पु० का०) तैरत...|३. (का०) (10) (प्र०) बड़ी.... ४. (का०) (३०) में...! ५. (का०) (३०) (प्र०) अपरामृत ह को.... ६. (१० पु. नी० सी०) तऊ समिश्नकी प्यास.... ७.(सं० पु० प्र०) (का) (२०) (म०) करने मग.... .00 (0) - Rs