पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/३८९

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काव्य-निर्णय - जोग कहाँ मुनि-लोगन-जोग, कहाँ अबला-मति है चपला - सी। स्यांम कहाँ अभिराम-सरूप, कुरूप कहाँ वो कंस को दासी ॥" उर्दू साहित्य में भी इसके प्रचुर उदाहरण मिलते हैं, जैसे- "कहाँ त, और कहाँ उस परी का वरल 'नजीर' । मियाँ तू छोड़ ये बातें दिवाना-पन की - सी॥" -नजीर अकबराबादी अथ द्वितीय विषम-“कारन-कारज भिन्न-रंग" को उदाहरन नेन बसे । जल-कज्जल-संजुत, पो अधराँमृत की अरुनाई। 'दास' गई सुधि-बुद्धि-हरी लखि केसरिया-पट-सोभ सुहाई ।। कोन अचंभी कही अनुरागी, भयौ हियरा' जस उजलताई । साँबरे,राबरे नेह - पगें- ही, पगी तिय · अंगँन में पियराई ।। _ वि.-"अस्तु कविवर विहारीलाल का नोचे लिखा दोहा भी द्वितीय-- "विषम' का अच्छा उदाहरण है यथा- __"या अनुरागी चित्त की, गति नहिँ सँमझे कोई । ज्यों-ज्यों बूई स्याँम-रंग, स्यों-त्यों ऊजर होई॥" और उर्दू वाले इसी अलकार से अलकृत कर कहते हैं--- __"समझ कर रहमे-दिल तुमको, दिया था हमने दिल अपना । मगर तुम तो बला निकले, गजब निकले, सितम निकले ।" अथ तृतीय "विम"-करता को क्रिया-फल नाही, पै अँनरथ" को उदाहरन- हुतो नीर-चर-हँनन कों, किऐं तोर बक ध्याँन । लीनों झपटि सचाँन तिहिं, गयौ ऊपरे प्रॉन ।। पुनः उदाहरन जथा-- तो कटाच्छ-उर मन दुरयौ, तिमिर-केस में जाइ। वहँ बेनी ब्याली डस्यौ, कीजै कहा उपाइ । पा०-१. ( का०) (प्र०) वहैं...। (३०) नेनन में जल...। २. (३०) पीय- धरामृत...। ३. ( का० ) (३०) (प्र०) हियरी ... ४. (प्र.) सर-तट जलचरनन का, घर हुतो बक...। ५.( का०) (प्र.) तु। (३०) तुव...। ६. (प्र०) तह ग्यालिन बेनी डस्यो...