पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/४१५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३५० काव्य-निर्णय पुनः मीलित उदाहरन जथा- केसरिया-पट, कॅनक-तन, कॅनकाभरन-सिंगार। गत केसर केदार में, जॉनी जाति न' दार ।। वि०-"दासजी कथित यह उदाहरण मीलित के "प्रागंतुक-धर्म-द्वारा तिरो- धान" रूप द्वितीय भेद का है। नायिका का, केसरिया वस्त्र, सुवर्ण के श्राभूषण पहिने केसर के खेत में अनुगमन ज्ञात न होना श्रागंतुक-धर्मों-द्वारा तिरोधान है। किसी-किसी ब्रजभाषा के अलंकार-प्राचार्य ने 'मीलित' की 'माला' भो मानी हैं, यथा- ___ "प्रधर पान, मेंहदी करेंन, चरन महाबर-रंग । लखि न परत सखि सुमुखि के, अहो अलौकि अंग ॥" यहाँ नायिका के अधर-लालिमा में पान, हाथों की ललाई में मेंहदी और चरणों की अरुणता में जावक के रंगों का विलीन हो जाना, छिप जाना- भिन्नता का ज्ञान न होना रूप तीन वर्णनों के कारण "माला" मानी है।" अथ साँमान्य-उदाहरन जथा- आरसी को आँगन सुहायौ, मँन - भायौ-२ नेहरन में भरायौ जल-उज्जल सुमन माल । चाँदनीं बिचित्र लखि चाँदनी-बिछोंनन पै, दूरि कै सहेलिँन को बिलसै इकेली-बाल । 'दास' आस-पास बहु-भाँतन बिराजे धरे, पन्ना, पुखराज, मोती, माँनिक-पदक लाल । चंद-प्रतिबिंब ते न न्यारौ होत मुख औ न- तारे प्रतिबिंब ते न्यारी होत नग जाल ।।. वि०-"सामान्य का उदाहरण 'रघुनाथ' कविवर से भी अच्छा बन पड़ा पा०-१.(३०) मदर | २. ( का० ) (३०) (सं० पु० प्र०) (०नि०) छवि-छायो... ३. (प्र०) नहरन में...। ४.( का० ) विछौनों पर । (वे.) ( ०. नि०) विछोंना पर...। (प्र०) बिछोंने र ... ५.(सं० पु० प्र०) (०नि०) चेंदुवैन.... ६. (प्र.)भाप...। ७.(प्र.)विन..... ( नि०) नख...।

  • नि० (दास) पृ०१० ३२-नायिका-दीति-वर्णन।