पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/४२२

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काव्य-निर्णय ३८७ सिद्ध हो जाय । संस्कृत-अलंकार मंथों में 'सम' को-"यथायोग्य संबंध वर्णन किये जाने पर', "कारण के अनुरूप कार्य का वर्णन किये जाने पर" और "बिना अनिष्ट के कार्य की सिद्धी के वर्णन को क्रमशः प्रथम, द्वितीय और तृतीय "सम". अल कार का लक्षण कहा है। यही नहीं, वहाँ प्रथम 'सम' के सदासद्योग संबंध के कारण दो भेद अधिक किये गये हैं, क्योंकि यथायोग्य संबंध कहीं उत्तम और कहीं निकृष्ट पदार्थों का भी होता है। अतएव सद्योग में-"उत्तमों का श्लाघनीय यथायोग्य-संबंध" और असद्योग में---असद् वस्तुओं का निंदनीय यथायोग्य संबंध का वर्णन किया जाता है। साथ-ही श्लेष से अनिष्ट होते हुए भी प्रकट रूप में इष्ट-प्राप्ति ज्ञात हो तो वहाँ भी 'सम' का विषय माना जायगा। सम का अर्थ है-यथायोग्य, बराबर । इसी से यह अलंकार 'विषम' का विरोधी है-उससे विपरीत है। अतएव साधारण रूप कारण के अनुरूप कार्य का होना, उद्यम करने पर उसका फल मिलना और यथा योग्य का संबंध होना ही 'सम' नहीं है, अपितु कवि, जब अपने कौशल से कुछ उक्ति-वैचित्र्य लाकर अनुरूप कारण देते हुए वे कारण चाहे वास्तविक न हों-योग्य कार्य, फल प्राप्ति तथा उचित संबंध का वर्णन करता है तभी यह अलंकार बनता है और इन वर्णनों में श्लेष की सहायता भी माननीय है। काव्य-प्रकाशकार श्री मम्मट 'समालकार' के प्रथम जनक ( उत्पत्ति करने वाले) कहे जा सकते हैं, क्योंकि आपसे पूर्व प्राचार्यों के ग्रंथों में इसका उल्लेख नहीं मिलता । काव्य-प्रकाश में इसका लक्षण -"समं योग्यतया योगो यदि संभावितः क्वचित्' ( यदि कहीं पर दो वस्तुओं का संयोग यथोचित जानकर स्वीकार कर लिया जाय तो 'सम' ) कहा गया है। साथ-ही वहाँ-"इन दोनों के बीच में यह प्रशंसनीय है, यदि ऐसे औचित्य के संबंध की निश्चयरूप से कहीं पर प्रतीति हो तो वहाँ पर भी 'सम' अलकार होगा। यह अल कार दो सत्-असत्पदाथों के द्वारा भी प्रकट किया जा सकता है।', इत्यादि ..( का० पु० दशम उल्लास, साहित्य-संमेलन प्रयाग वाला )।" यहाँ सदासत्पदार्थों के योग वाले उदाहरण भी दिये हैं। निष्कर्ष यह कि श्री मम्मट ने सम का एक-ही भेद का उल्लेख करते हुए कहा है-"सममौचित्यतोऽनेकवस्तु संबंध वर्णनम्" (जहाँ उचित रूप से अनेक वस्तुओं का संबंध वर्णन किया जाय) और साहित्य-दर्पण में--"समं स्यादानुरूप्येण श्लाघा योग्यस्य वस्तुनः" ( योग्य वस्तुत्रों की अनु- रूपता के कारण प्रशंसा ) को सम का लक्षण मान एक-ही भेद का उल्लेख किया है।"