पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/४२४

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काव्य-निर्णय पद्म सिंह पृ० ३७ )। विहारी जी का निम्न-लिखित दोहा भी 'सम' का सुदर उदाहरण है- "चिर-जीपी जोरी-जुरै, क्यों न सँनेह गंभीर । को घटि, ए वृषभानुजा, वे हलधर के बीर ॥ इस पर भी टिप्पणी स्व. श्री पद्मसिंह शर्मा की दर्शनीय है, जो उन्होंने "सतसईसौष्ठव" के पृ०६७-८ पर दी है।" अथ प्रथम सँम को पुनः उदाहरन जथा- हरि-किरीट केकी-पखन, निज लाइक फल' पाइ । मिल्यौ चंद' की चंद्रिकन, अनु अँनु है मँनु जाइ। अस्य तिलक इहाँ-हूँ जथा जोग को संग बरनन हैवे ते 'प्रथम सँम' है। अथ दुतीय सँम- "कारज-जोग कारन को उदाहरन" जथा- चंचलता सुर-बाज ते 'दास जू', सैलँन ते कठिनाई गही है। मोहन रीति महा विष की दई, मादकता मदिरा ते लही है। (मर देखि डरें जर सों, बिहरें जल-जंतु की रीति यही है। न्याइ-ही नोंच -हि-नीच फिर, ये इंदिरा सागर-बीच रही है। वि०-"द्वितीय सम का उदाहरण भी "कविराजा मुरारीदान" रचित "भारती-भूषण' (केडिया, पृ० २५५) में सुंदर दिया गया है, यथा- "गोकुन-जनम लियौ, जल-जमुना को पियो, सुबल सुमित्र कियौ ऐसौ जस-जाप है। ॐनत 'मुरारि' जाऊँ जननी जसोदा जैसी, उधव निहारि, नंद तेसो तिहिं बाप है। कॉम-बॉम ते मॅनूप तजि ब्रज चंद - मुखी, रीके से बरी • कुरूप - सों अमाप है। पंचतीर • भप को न बीर नेह-जप कौ न, बय को न, पूतना के पब को प्रताप है। पा०-१. (का०)(३०)म०) थल ..।२ (का०) (३०) चद्रकनि-चद्गकनि...। ३. (का०) (३०) (प्र०) (२० स०) सो.... ४. (प्र०) नीचन-संग फिर...! • स० स० (ला० भ० दी०) पृ० १३, ६५ । '