पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/४३

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काव्य-निर्णय वि०-"भिखारीदास जी ने इस कवित-द्वारा ब्रजभाषा-काव्य-रचना के लिए-सूरदास (अ० छा०, ज०-सं० १५३१ वि० ), रसखान (२० ज०-० १५८३ वि०), ब्रह्म, पूरा नाम-'महाराज वीरबल' (सं० १६०० वि०), लीलाधर (र० सं० १६०६ वि०), केशवदास (ज० सं० १६१२ वि० ), रहीम, पूरा नाम-'अब्दुर्रहीम खानखाना' (ज० सं० १६१० वि०), बालम (ज० सं० १६३६ वि०), मुबारक (ज० सं० १६४० वि०, र० सं० १६७० वि०), विहारी ( ज० सं० १६६०), चिंतामणि ( ज० सं० १६६६ वि०, र० सं०--१७७० के अासपाम ), सेनापति (ज० सं० १६४६ वि०), मंडन ( २० सं० १७१६ वि० ), सुखदेव मिश्र (र० सं० १७२० से १७६० वि०), नीलकंठ (र० सं० १७३० वि०), देव ( ज० सं० १७३० वि०), निवाज (र० सं० १७३७ वि० ) , भूषण (ज० सं० १६७० वि०), रसलीन पूरानाम-'सैयद गुलामनवी ( ज० सं० १७५६ र० और सं० १७६४ वि.), मतिराम ( ज० सं० १६७४ और र० सं० १७१६ वि० ), तोषनिधि (२० सं० १७६१ वि०) और निपट निरंजन (ज० समय अज्ञात ) श्रादि को श्रादर्श मानते हुए इनको रम्य-रचनात्रों को 'ब्रजभाषा'-ज्ञान-वर्द्धन का साधन कहा है। ब्रजभाषा के कमनीय कवि और उसकी शुद्धता के प्रतीक "श्रीनंददास" (अष्टछार) और प्रेम की पीर के नये चाहक "अानंदघन" (सं० १७४६ वि० ) का नाम नहीं लिया है-इन्हें इस श्रेणी में नहीं गिनाया है। क्यों.......", का कारण अज्ञात है। नंददासजी के लिये जहाँ काव्य- पारखियों ने- "और कबि गदिया, नंददास जरिया" कहकर उनका नमन किया है, वहाँ "श्रानंदघन" के श्रीवृंदावन-निवामी स्व. श्री गो. राधाचरणजी ने- "दिल्लीस्वर-नृप-निमित एक धुरपद नहिं गायौ। पै निज प्यारी-कहें, सभा को रीमि-रिझायौ ॥ कुपित होह नृप दिये निकासि, विदावन पाए। परम सुजॉन सुजॉन-छाप पद, कबित बनाए ।

  • सेनापति जी का जन्म समय अभी निश्चित नहीं उक्त संवत् के आस-पास आपका जन्म

माना जाता है। सं० १७०६ में उन्होंने अपना सुप्रसिद्ध ग्रंथ "कवित्तरनाकर लिखा । +, निवाज का जन्म-सं० अभी अशात है। 1, भूषण का समय शुक्ल जी संमानित है। उनका शिवराज भूषण सं० १७३० वि० में बना यह निर्विवाद सिद्ध है। इस प्रथ की जो सबसे पुरानी प्रति मिली है उसका लि० का० सं० १८१८ वै० है।