पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/४३२

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काव्य-निर्णय ३३७ भाविक का वर्गीकरण करते हुए किसी ने "वास्लव वर्ग" में, किसी ने "वर्णन- वैचित्र्य-प्रधान" वर्ग में और किसी ने 'प्रकीर्णक' वर्ग में इसे रखा है और शब्दार्थ 'भूसत्तायां-इक' रूप से व्युत्पत्ति करते हुए -"सत्ता की, भाव-स्थिति की रक्षा करना" कहा है । इसी लिए इस अलंकार में भूत-भविष्यत् भाव को वर्त- मान की भाँत कहकर उनको रक्षा को जाती है। क्वचित् संस्कृत-अलंकाराचार्यों ने भ विक के भूत और भविष्य-कालोन वर्णनों में दो भेद "भूतकालीन, भविष्य-- कालीन" मान इनके उदाहरण भी दिये हैं, जथा- भाविक उदाहरन जथा-भूतकाल को आज बाकी' भृकुटी गढ़ी है मेरे नैन. अजों कसकै चितोंन उर-छेद पार है भई। काजर' जैहैर-सौ कैहैर करि डारयौ हु तो, मंद-मुसिक्यॉन जौन होती वो सुधा-मई ॥ 'दास' अजहूँ-लों दृग-मागे तेन न्यारी होति, पैहरें सुरंग सारी सुंदर बधू नई । मोहि मोद दै करि, मैंनेह-बीज बै करि, और ____ कुंज-ओट के करि, चितै करि चली गई ।। दितीय भाविक उदाहरन जथा- भविष्य काल को" माज बड़े-बड़े भागन-चाहि, विराजत मेरौ-हो भागबिचारौ। 'दास जू'माज दियौ बिधि मोहि, सुरालइ के सुख ते सुख न्यारौ।। आज मो भाग 3 उदैगिरि में उयौ, पूरब-पुन्न को तारौ उज्यारौ। मोद में अंग, बिनोद में जीय, चहुँ कोद में चाँदिनी, गोद में प्यारौ॥ अस्य तिलक इन दोनों प्रथम-दुतिय उदाहरन में भूत काल की बात को और भविष्य में पा०-१. (का०) (३०) (सं० पु०प्र०) अजों बाँकी...| २. (प्र०) बाँकी.... ३. (का०). (३०) (सं० पु० प्र०) कटाच्छ...। ४. (का०) (३०)(प्र.) (सं० पु० प्र०) कज्जल... ५. (का०) (३०) यो.... ६. (का०) ज्यों...(३०) जो...। (प्र०) वा... ७. (३०) चूदरी। (प्र०) सुदरि बरनई । (सं० पु० प्र०) सुदरी...1 . (का०) (३०) (प्र०) मोही...! ६ (का०) (३०) मोह...। १०. (का०) (३०) (प्र०) जु...। ११. (३०) भाग्यवन्यारो। (सं० पु० प्र०). बरधारी। १२. ( का० )(३०) (प्र०)प्यो...। १३. (का०) (३०) (प्र०) भाल.... १४. (का०) (३०) (प्र०) उयो....