पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/४४

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काव्यनिर्णय नादिरसाही रज मिले, कियौ न नेक उचाट मन । हरि-भक्ति-बेलि सिंचन करी, घनानंद भानंदधम ॥" यह कर अपनी श्रद्धा की भेंट अर्पित की है। यही नहीं, श्राप के काव्य के प्रति कहा गया है- "नेही महा, ब्रजभाषा-प्रवीन. मी सुंदरताई के भेद को जानें । राह बियोग की रीति के कोबिद, भावनाँ भेद सरूप को ठाँनें । चाह के रंग में भीज्यौ हियो, बिछुरें-मिले पीतम सांति न आँने । भाषा-प्रवीन सुखद सदा रहें, मो धन जू के कवित्त बखाँने ॥" अथवा- "प्रेम सदा अति ऊँची लहै. सुकहै इहि भांति की बात छकी । सुनि के सब के मन लालस दौरै, औ बोर लखें सब बुद्धि चकी॥ जग की कबिताई के धोखें रहै. ह्याँ प्रबीनन की मति जाति जकी । सममै कबिता 'घन भाँनद' की. जिन आँखिन प्रेम की पीर तकी ॥" दासजी उल्लिखित कवियों की रचनाएँ इस प्रकार हैं- "सूरदास""-सूरसागर, साहित्य-लहरी तथा नवीन खोज से प्राप्त-"सूर- सहस्रनामावली, सूर-गीता, सूर-सेवाफल । अन्य-अनुमोदित-सूरसारावली. "रसखाँन".-"प्रेमवाटिका, फुटकल-कवित्त, सवैया तथा गेय पद..." "ब्रह्म"-"फुटकल"-कवित्त, सवैया तथा गेय पद... "लीलाधर-फुटकल"-कवित्त, सवैया। "केशवदास" "कवि-प्रिया, रसिक-प्रिया, रामचंद्रिका, वीरसिंह-चरित, विज्ञान-गीता, रतन-बावनी, जहाँगीर-जस-चंद्रिका..." ___"रहीम"- “रहीम दोहावली," अथवा "रहीम सतसई," बरवैनायिका- भेद, शृगार सोरठ, मदनाष्टक, रासपंचाध्यायी, नगर-शोभा तथा फुटकल-कवित्त, सवैया, गेय पदादि.... +

  • , ब्रजभाषा-साहित्य सूर्य श्री सूर-विरचित ग्रंथों के विषय में विभिन्न मत है, कोई कुछ,

कोई कुछ मानते हैं। हमारे अभिमत से उक्त ग्रंथ ही सूर रचित हैं। श्वर एक प्रथ-छोटी- रचना "पांडवगीता और मिली है। ब्रह्म अर्थात् महाराज बीरबल का कोई प्राथ उपलब्ध नहीं है और न उसका उल्लेख ही कहीं मिलता है। बहुत दिन हुए स्व० श्री हरिनारायण जी पुरोहित जयपुर ने इनके बंदों का संकलन किया था। भरतपुर स्टेट की लायबरी (सरस्वती भंडार) में भी इनकी रचनाओं का एक संग्रह प्रय है। +, रहीम पर सबसे सुंदर पुस्तक स्व० श्री मयाशंकर जी याशिक बी० ए० संपादित हैं।