पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/५०५

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४७० काव्य-निर्णय "सुंनत पथिक मुंह माघ-निसि, लुऐ चलति उहि गाम । विन-बमें, विन-ही सुने, जियति बिचारी बॉम ॥" "नभ-लाली, चाली निसा, चटकाली धुनि कीन । रतिपाली भाली अंनत, आए बनमाली न ॥" उर्दू में भी "अनुमान" पर अच्छी-अच्छी सूक्तियाँ हैं, दो-चार देखिए और सराहिए जैसे- "बलायें लेके पूछा हमने उनसे, कहिये, क्या समझे । वह पहिले मुस्कराये, फिर कहा, तुझसे खुदा समझे ॥" अर्ज मतलब पर बिगड़ जाते हैं वह । बात कहना भी शिकायत हो गयी। हाल-वस्ले. गैर का, उस शोख से क्या पूछिये । या तो यह होगा, कि होगा, या यह होगा, होगया । ख्वाब में उनको किसी ने रात छेड़ा है जरूर । देखते . हैं गौर से मुझको बुलाकर सामने ॥ तीसरौ प्रमान-उपमान को उदाहरन जथा- सहस घटॅन में लखि परे, ज्यों एकै रजनीस । त्यों घट-घट में 'दास' जू,' प्रतिबिंबित जगदीस ॥ चौथौ प्रमान 'सबद' के भेद लच्छन जथा- स्र ति-परॉन की उक्ति और लोक-उक्ति दै चित्त । बाच्च-प्रमाँन जु माँ निऐं, सब्द:प्रमान सुमित्त । वि०-"दासजी ने चौथे प्रमाणालंकर स्वरूप 'शब्द-प्रमाण' के दो भेदों का कथन करते हुए वाच्य-प्रमाण, श्रुति-पुराणादि शास्त्रीय उक्ति, शन्द-प्रमाण रूप लोकोक्तियों को बतलाया है, उदाहरण जैसे- पा०-१.(का० ) (३०) (प्र०) है....। २. ( का० ) (३०) (प्र०) को.... (सं० पु० प्र०) कै...।