पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/५०६

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काव्य-निर्णय स्नु ति-पुराँनोक्त प्रमाँन उदाहरन जथा- तुम जु हरी पर-बाल, ता ते हम या' हाल में । नाथ, विदित सब काल, जो 'हन्यात सोहंन्यते ॥ लोकोक्त-प्रमान उदाहरन जथा- कॉन्ह चलौ किन एक दिन, जहँ परपंची' पाँच । देह कहें तौ लीजियो, कहा साँच को आँच ॥ वि०-"शब्द-प्रमाण और लोकोक्ति के निम्नलिखित दो उदाहरण भी अति सुंदर हैं, क्रमशः यथा- "संकर से मुंनि जाहि रखें, चतुरॉनन-मॉनन-धारि ते गावें। सो हिय नेकु-हिं भावति-ही, मति-मूद महा 'रसखान' कहावें ॥ जा पर देव-प्रदेव - भुजंगम, बारत पाँनन बार न लावें । ताहि महीर की छोहरियाँ, कछिया-भरि छाछ पै नाँच-नचाबें ॥" "एक तौ भोंन महा अति साँकरौ, दूसरे लोगन को है भराभर । तीसौ और बदौ दुख हयाँ, घरहाई करें घनों घेर घराघर ॥" कासों कहों में हिए की बिथा, कथा और सुनों सब भाँति निरादर । पीता को मिलनों सजनी, भयो पास को बास बिदेस-बराबर ॥" पाँचयों प्रमाँन 'आत्मतुष्टि-लच्छन जथा- अपने अंग-सुभाइ कौ, दृढ़ बिसबास जहाँ हिं । 'मार्तंमतुष्टि' प्रमाँन कबि-कोबिद कहें तहाँ-हिं॥ अस्य उदाहरन जथा- गहि भरोसौ जाँहुगी, स्याँम-किसोरे-ध्याहि । प्राली, मो अँखियाँ न-तह' इती न रहिती चाहि ॥ वि०-"अात्मतुष्टि के उदाहरण स्वरूप ब्रजभाषा के चहेते कवि 'द्विजदेव' जी को सूकि देखिये, यथा- पा०-२ (का० ) (३०) (प्र.) यहि...। २. ( का० ) (प्र०) पर पचौ...। ३. (३०) दीज्य कहैं सो दीजिऐ . । (सं० पु० प्र०) दिव्य कहत सो दीजियो...। ४.(01. प्र०) सुभाव...। ५. (प्र०) कहत...। ६. (३०) अंखियांन-तर...। (सं० पु०म०) अँखियांन-तर इन्हें...।

  • ० भ० (केडिया) ०-३७० ।