पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/५३६

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काव्य-निर्णय एकाबली पुनः उदाहरन जथा- एरी, तोहि देखि' मोहि पावत अचंभौ इही, रंभा - जॉनु - गि -हीं गयंद-गति केरे हैं। गति है गयंद, सिंघ-कटि के समीप सिंघ-' कटिहूँ सों रोंमराजी व्यालिन सभेरे हैं। रोमराजी च्यालिन सु संभु-कुच-गें 'दास'- संभु-कुच हूँ के भुज मेंन-धुज नेरे हैं।' मेंन-हीं जगाबति सो आँनन द्विजेस अरु- ऑनन - द्विजेस-राहु - कच - कांति धेरे हैं। वि० - एकावली के सुदर उदाहरण श्री राधा-भक्त 'हठी' और शिव भक्त शिव ने भी रचे हैं, यथा- "गिरि-पति लागी मेरु, मेरु-पति लागी भूमि, - भूमि-पति लागी कौल-कच्छप के चारी सों। दिग - पति लागी दिगपालन के हाथ 'हठी', सुर • पति लागी सुरराज छत्रधारी सों॥ दॉन - पति करन, करन • पति लागी बलि, बलि - पति लागी कैलास के बिहारी सों। तीनों लोक - पति, लगी है ब्रज - पति सों, ब्रज-पति की लगी है, वृषभान की दुलारी सों॥" "नचे है यारि, ताप कच्छप असबार, कच्छप की पीठ पै सबार सेस कारा है। - सेस पै सबार भवनि भार-सों दबाइ राखी, प्रबनि पै सबार सिंध-परबत विस्तारा है। .. परवत पै सबार कैलास सहै "सिब' कवि, . . . कैलास पै सबार सँमर मंदी गॅन-भारा है। __.. ' नंदी पसबार संभु, संभु“पै सबार जटा, , ... . .. जटा पै मबार मात गंगा की धारा है। पा०-५.(३०) देखें.... २. (३०) कटि-ट्र सरोमसजी...! .(३०) (०. पु० प्र०)...जगावती-सी मानन...!