पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/५३७

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५०२ काव्य-निर्यय कानमाला-लच्छन जथा- कारन ते कारन जॅनम, 'कारन-माला'चारु। जोति-आदि, जोति ते.बिधि, विधि ते संसार ॥ वि०-"कारण से कारण. का जन्म होने पर 'कारण-माला' होती है, जैसे- आदि से ज्योति, ज्योति से विधि और विधि से संसार । भाषा भूषण में इसे 'गुफ' अलंकार कहा गया है-“कहिए 'गुंफ' परंपरा, कारन की जब होत", अर्थात् जहाँ कारणों की श्रृंखला दिखलायी जाय.... यहाँ गुफ का शब्दार्थ "गुथा हुश्रा लेकर अनेक कारण एक-दूसरे से गुथते चले जाते हैं। साथ-ही इसमें कहीं पहिले कही हुई वस्तु कारण होती है और कहीं पिछली वस्तुएँ कारण होती हैं । इसलिए यह 'कारण-माला' ही है। कारण-माला यौगिक शब्द है, और उसका अर्थ-कारणों की माला, श्रृंखला। अतएव पूर्व-पूर्व कथित बातें जब उत्तरोत्तर कथित बातों के कारण-रूप में कही जॉय, अथवा जहाँ पूर्व-पूर्व पदार्थ उत्तरोत्तर कहे हुए पदार्थों के कारण कहे जाँय, तब यह अलंकार होता है । किसी कारण से किसी कार्य का होना कहा गया, इसके बाद उस कार्य को प्रागे के कार्य का कारण कहा गया और इस- प्रकार यह श्रृंखला बनते चली गयी-कुछ दूर तक बँधती चली गयी तो ऐसी अवस्था में यह 'कारण-माला' कही जायगी, किंतु ध्यान रहे, यह शृंखला दो या उससे अधिक अवश्य होनी चाहिए । साथ-ही "वहाँ बाद में कहे हुए प्रत्येक कार्य का कारण पूर्व में कही हुई बातों में कार्य हो जाय यहां भी "कारण-माला" कही जायगी । अर्थात् , जहाँ पूर्व-पूर्व कथित पदार्थों के उत्तरोत्तर कथित पदार्थ. कारण कहे जायगे वहाँ भी यह माला होगी। कारण-माला को भोज के अतरिक्त प्रायः सभी-रुद्रट-मम्मटादि-प्राचार्यों ने माना है-उसका पृथक् अस्तित्त्व स्वीकार किया है । भोज ने इसे हेतु में माना है। श्री मम्मट ने इसका लक्षण "वहाँ क्रमशः किसी बात का कारण उसके पूर्व-पूर्व की कही हुई बात हो" माना है (का० प्र० पृ. ३२७)। साहित्य- दर्पण (संस्कृत) में-"परं-परं के प्रति जहाँ पूर्व-पूर्व वस्तु हेतु होती चली जॉय, यहाँ"...। यहाँ हेतु से कारण का अर्थ लिया जाता है। चंद्रालोक में भी -"किसी कारण से एक कार्य हो, फिर इसी कार्य को कारण बनाकर दूसरा कार्य हो और इसी क्रम से किसी वाक्य की पूर्ति करने को 'कारण-माला' कहते हैं। ___ब्रजभाषा के अलंकार प्रयों में कोई इसे-कारण-माला, कोई गुफालंकार और कोई "हेतु-माला" भी कहते , यथा-'