पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/५६०

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काव्य-निर्णय ५२५ इन दोनों में विविध क्रियाओं का एक बक्का-ही कारक है, इसलिये यहाँ भी उक्त अलंकार है। अथ माला-दीपक लच्छन जथा-- दीपक एकाबलि-मिले, 'माला-दीपक' जॉन । "सत-संगति, संगति-सुमति, मति-गति, गति-सुभ-दान ॥" वि०-"दासजी ने इस दोहे में "माला-दीपक" का लक्षण और उदा. हरण दोनों का उल्लेख किया है । माला-दीपक को आपने दोपक और एकावली के संयुक्त रूप को माना है। अस्तु जहाँ पूर्व कथित वस्तु-द्वारा उत्तरोत्तर कथित वस्तुओं का एक धर्म रूप से श्रृंखला-बद्ध रूप में वर्णन किया जाय, तो वहाँ यह अलंकार कहा जाता है। अथवा जहाँ वर्य-अवयं की एक क्रिया का गृहोत और मुक्त-रीति से व्यवहार किया जाय, तो वहाँ भी यह अलंकार मानना कहा है । परंतु यह लक्षण उपयुक्त नहीं माना जाता, यथा- "प्रस्तुताप्रस्तुतोभयविषयस्वाभावेपिदीपकच्छायापत्तिमात्रेण दीपकंव्यपदेशः । -कुवलयानंद अर्थात् इस लक्षण में वयं-अवयं का प्रयोग अनुचित है, क्योंकि यहाँ सादृश्य-उपमेयोपमान-भाव नहीं रहता है,-इति कुवलयानंदकार वचनात् । रस-गंगाधर में तो पंडितराज जगन्नाथजी ने स्पष्ट रूप से यह बात कहीं है, जैसे-"सादृश्यसंपर्काभावं।" ___ माला-दीपक में दो बातें आवश्यक हैं, प्रथम कई वस्तु एक धर्म से ही संबं- धित हों और दूसरे प्रत्येक पूर्व-कथित वस्तु उत्तरोत्तर कथित वस्तुओं के विशेषण रूप में प्रस्तुत हों। अतएव दीपक में जो सादृश्य का भाव है, वह यहाँ नहीं रहता। इसलिए प्रस्तुतास्तुत शब्दों की परिभाषा को यहाँ स्थान नहीं, केवल वस्तु शब्द ही इसके लिये पर्याप्त है। _____माला-दीपक यौगिक शब्द है जो दो शब्दों से बना है। यहाँ माला का अर्थ शृखला और दीपक कई वस्तुओं में एक-ही धर्म का प्रकाश करने के भाव में व्यवहृत हुश्रा है। इसलिए कितने ही प्राचार्य माला-दीपक को दीपकालंकार का भेद नहीं मानते और न उसके साथ वर्णन-ही करते हैं । साथ-ही वे इसे सादृश्य-मूलक वर्ग में न मानकर श्रृंखला-मूलक वर्ग में गणना करते हैं । माला- दीपक-'दीपक' और 'एकावली' का संयुक्त रूप भी कहा जाता है, । यथा- "दीपकैकावलीयोगान्मालादीपमुच्यते।" -कुवलयानंद